kuch khas nhi ..!!
कैसी हो सखी ? सबसे पहले तो कान पकड़ कर माफ़ी चाहूँगी ! हाँ , पता है महीनों बीत गए आये। पर क्या करूँ ? अब समय की बड़ी किल्ल…
प्रिये संग्रहिका, गुस्से की भेंट चढ़ी बहने ! तुम्हारी दो बड़ी बहनों को गुस्से की भेंट चढ़ा चुकी हूँ। तुम्हारे तक भी उस गुस्से की लपटें पहुँचने ही वाली थीं लेकिन शुक्र मनाओ तुम्हारी बड़ी बहनों ने तुमको बचा लिया। उनकी भेंट ने ही मेरे हृदय में इतना अधिक कंपन पैदा कि…
Svaghoshit Lekhika
कैसी हो सखी ? अपना बताऊँ तो, मैं तो ठीक हूँ पर इस बीच आसपास बड़ी ही विचित्र घटनाएँ घटित हो रही हैं - देश में भी और परिवार में भी !! कुछ दिन पहले तुमसे हुयी बातचीत बड़ी ही प्रासंगिक थी और इस बीच उसी के कई जीवंत उदाहरण भी देखने को मिले। कल यानि 12 को इस वर्ष का …
Svaghoshit Lekhika
प्रिय संग्रहिका , जानती हूँ ये कोई उचित समय नहीं है आने का, लेकिन फिर भी आदत से मजबूर एक बार वापस तुम्हारे पास मुँह उठा कर चली आयी हूँ। अब आ ही गयी हूँ तो मंतव्य भी बता ही देती हूँ बिना इधर-उधर की बात किये। तो बात कुछ ऐसी है कि , बीते कुछ सालों में, न्यूज़ में…
Svaghoshit Lekhika
कैसी हो सखी ? सबसे पहले तो कान पकड़ कर माफ़ी चाहूँगी ! हाँ , पता है महीनों बीत गए आये। पर क्या करूँ ? अब समय की बड़ी किल्ल…