प्रिय संग्रहिका ,
जानती हूँ ये कोई उचित समय नहीं है आने का, लेकिन फिर भी आदत से मजबूर एक बार वापस तुम्हारे पास मुँह उठा कर चली आयी हूँ। अब आ ही गयी हूँ तो मंतव्य भी बता ही देती हूँ बिना इधर-उधर की बात किये। तो बात कुछ ऐसी है कि , बीते कुछ सालों में, न्यूज़ में कम उम्र के व्यक्तियों के मरने की ख़बरें कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी हैं। और ऐसा नहीं है कि उन्हें कोई बीमारी थी या वे किसी दुर्घटना में मारे गए हों। अकस्मात मृत्यु ! हृदयाघात के अलावा भी कई कारण हैं जिनका मुझे पता नहीं है। ना ही मैंने जानना चाहा।
मेरे दिमाग में तो ये बात घर कर गयी कि ३० से पहले पहले जिनकी मृत्यु हो जा रही है, क्या उनको पता था कि वो तभी मर जायेंगे ? जाहिर सी बात है, नहीं !
उन्होंने भी तो भविष्य का कितना कुछ सोच रखा होगा। कईयों तो परेशान होंगे भविष्य की चिंता में। और कई तो भविष्य की चिंता में वर्तमान में कभी जी ही नहीं पाए होंगे। मतलब ठीक है , मुझे समझ आता है कि बिना चिंता के तो काम नहीं चल सकता ऊपर से ये है भी मानवीय प्रवृति - चिंता करने वाली। लेकिन जिसकी चिंता की, उसको कभी देखने का मौका ही ना मिले तो !? व्यर्थ है ऐसी चिंता।
क्या हो अगर हम अपनी सुविधा का सारा सामान इक्कट्ठा करने में इतना तल्लीन हो जाएँ कि वर्तमान में हमारे "हम" को भी हमारी जरुरत है हम यही बात भूल जाएँ !? और चलो मान लिया कि हमने एक समय तक " जब तक सामर्थ्य है तब तक" सारा सामान इकट्ठा कर भी लिया, तबके लिए जब हम सामर्थ्यहीन हो जायेंगे। लेकिन क्या हो अगर सामर्थ्यहीन होकर अपने जुटाए सुविधा के सामान का उपभोग करने से पहले ही ऊपरवाले का बुलावा आ जाये !? गया सब पानी में !!
देखो चिंता करना तो स्वाभाविक है , लेकिन हम अपनी चिंता का उद्देश्य ही बदल दें तो ? मतलब ऐसा कि, मेहनत उस चीज के लिए या उस दिशा में की जाये जिससे हमारे बाद भी वो मेहनत ज़ाया न जाये, उसकी उद्देश्य पूर्ती होती रहे।
मेरा तो एकमात्र उद्देश्य तुम्हीं हो !! ( हाँ जानती हूँ, फेंक रही हूँ ! और ये भी जानती हूँ कि तुम पकड़ लोगी ! फिर भी फेंक रही हूँ !!)
तो बताओ ऐसी कौन सी चीज है जिसके लिए तुम मेहनत करना चाहोगी, जो तुम्हारे बाद भी व्यर्थ न लगे !?
विदा दो , फिर आऊँगी ।