प्रिये संग्रहिका ,
कैसी हो ? ( उत्तर की अपेक्षा है ! )
मेरी चिंता मत करना , मैं ठीक हूँ। बस कभी-कभी ओवर थिंकिंग अधिक हावी हो जाती है। पर फिर संभाल लेती हूँ।
पिछले २ हफ़्तों से बहुत कुछ हुआ है जिसका ब्यौरा तुम्हें देना बाकी है।
अच्छा , कभी तुम्हारे साथ ऐसा हुआ है कि अतीत में भूल से लिए कुछ फैसले तुम्हें अब तक प्रभावित कर रहे हों ?
उदाहरण के लिए बताऊँ तो गलत मित्रों, गलत साझेदार या गलत जीवनसाथी का चयन करना। मुश्किल तब नहीं है जब आप उनका साथ छोड़ सकने में सक्षम हों। मुश्किल तो तब होती है जब आप उन्हें छोड़ नहीं सकते। क्युँकि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष ढंग से कहीं न कहीं आप उनपर निर्भर हो चुकें हैं। या शायद आपने स्वयं को उनसे सम्बंधित कुछ जिम्मेदारियों में बाँध लिया हो। कई बार रिश्तों को निभाया केवल एक ही ओर से जा रहा होता है और दूसरी ओर से मात्र उपयोग। अगर आप निभाने वाले भाग में हैं तो निश्चित ही घाटे में हैं।
तुम्हें तो पता ही है मैं आदर्शों के बड़े पुल बाँधती हूँ। मुझे लगता है कि मैं केवल कर्तव्यों का पालन करके जीवन यापन कर सकती हूँ , बदले में मुझे अपने लिए कोई अपेक्षा नहीं होगी सामने वाले से। पर हकीकत तो ये है कि अपेक्षाएं तब नहीं होतीं जब शुरू से सामने से कोई अपेक्षापूर्ति ना हो रही हो। जब शुरुआत में अपेक्षाओं से अधिक चीजे मिल जाती हैं तो मन कम से कम वही अपेक्षा का स्तर पूरी यात्रा के दौरान चाहता है। लेकिन एक समय के बाद हर कोई पीछे हटने लग जाता है। शायद बेहतर विकल्प होने के चलते। इसीलिए रिश्तों में भी खुद को हमेशा बेहतर बनाये रखने की जद्दो-जेहत बनी रहती है। जो खुद को बेहतर साबित नहीं कर पाता वो फिर किसी और से प्रतिस्थापित कर दिया जाता है।
क्या तुम्हारे मन में कभी विचार आया है , मुझे प्रतिस्थापित करने का ?
आएगा तो बिना झिझक के बता देना।
पता है , कई बार उम्र में हमसे छोटे, ज्यादा समझदार और सुलझे हुए होते हैं।
४ दिन पहले घर पर मुझसे मिलने मेरी एक मित्र आयी थी। है तो पटीदार ही लेकिन हमारा रिश्ता इस शब्द से अधिक गहरा हो चला है मात्र ४-५ मुलाकातों में ही। मुझसे ३ वर्ष छोटी है पर बहुत समझदार है। मुझे ये देख कर आश्चर्य नहीं होता क्योंकि परिस्थितियां और मनोदशा ही मनुष्य के विचारों को आकार देती हैं। परेशानी हर किसी के जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है। अंतर बस इतना है कि कौन परेशानियों से किस तरह निपटता है। कोई केवल उसी के बारे में सोच-सोचकर घुल जाता है तो कोई उसको हल्के में उड़ा देता है। लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जो नापतोल के बराबर मात्रा में बैलेंस बनाकर चलते हैं। परेशानियों को ना ज्यादा खुद पर हावी होने देते हैं और ना ही उनको हल्के में उड़ा देते हैं। जीवन इतना सीरियस है नहीं जितना हम अक्सर उसे ले लेते हैं। निसंदेह हमें एक निर्धारित सिद्धांतो का पालन करते हुए आगे बढ़ना चाहिए लेकिन ऐसा भी ना हो कि अगर उन सिद्धांतों का परिस्थितियों के चलते पालन न किया जा सके तो पछतावे में ही मर जाएँ।
लड़की है तो बहुत बिंदास। उसे देख कर मन में नयी ऊर्जा का संचार हो जाता है। मुझसे छोटी है पर अनुभव और ज्ञान, कई क्षेत्रों में मुझसे अधिक है।
क्या तुम्हारी मुलाकात कभी किसी ऐसे व्यक्ति से हुयी है , जो उम्र में भले छोटा हो पर समझ अपनी उम्र से अधिक रखता हो ?
" मेरी सलाह मानो तो जीवन को इतना सीरियस भी नहीं लेना चाहिए। "
शायद यूनिवर्स मुझे कुछ सन्देश देना चाहता है। ये बात मुझसे पिछले एक हफ्ते में २ लोगों ने कही। और २ जगह मैंने आर्टिकल में यही बात पढ़ी। २ जगह यूट्यूब वीडियो में भी सुनी। ऐसा नहीं है कि मुझे ये बात पता नहीं है। पर ये बात मैं व्यवाहारिक रूप से अपने जीवन में कैसे लागू करूँ मुझे यही नहीं समझ आता है। मेरा दिमाग मुझे बार-बार वही बात सोचने पर मजबूर करता है जिससे सिवाय चिंता के कुछ हासिल नहीं होना है। मैं बहुत कोशिश करती हूँ कि ऐसा ना हो पर लगता है ये मेरे सामर्थ्य के बाहर की बात है। लेकिन मैं कोशिश करना नहीं छोडूँगी।
बचपन में कुछ पंक्तियाँ हमारी ज़बान को रटी होती थीं ----
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
इसकी उपयोगिता असल मायने में अब समझ आती है। असफलताओं से भयभीत होना स्वयं एक असफलता है। असफलताएँ सीख के लिए होती हैं ना कि डरने के लिए।
तुम्हें कभी असफलताओं से डर लगा है ?
चलो आज के लिए विदा दो अब। फिर आऊँगी कभी। ख्याल रखना अपना। शुभरात्रि।