अपना बताऊँ तो, मैं तो ठीक हूँ पर इस बीच आसपास बड़ी ही विचित्र घटनाएँ घटित हो रही हैं - देश में भी और परिवार में भी !! कुछ दिन पहले तुमसे हुयी बातचीत बड़ी ही प्रासंगिक थी और इस बीच उसी के कई जीवंत उदाहरण भी देखने को मिले।
कल यानि 12 को इस वर्ष का अभी तक का आखिरी इम्तेहान था। जीवन का असल इम्तेहान तो इस इम्तेहान के बाद शुरू होना है , ये सोचने का कि आगे क्या करना है !? ख़ैर कॉलेज की परीक्षाएँ ख़त्म होने के बाद इसी परीक्षा की तैयारी में
लग गयी थी, ये जानते हुए भी कि बहुत कुछ नहीं समेट पाऊँगी। लेकिन फिर भी जितना समेटा था उसको पुनः स्मृतिपटल पर चिन्हित करने का भरपूर प्रयास किया। इसी बीच कई घटनाएं ऐसी घटित हुईं जिसने बाधा उत्पन्न की। जो पहली घटना घटित हुई वो तो मुझे समझ ही नहीं आ रहा कि तुम्हे बताऊँ कैसे ! अगली बातचीत में जरूर बताऊँगी अभी बस इतना जान लो कि सोनम-राजा जैसी घटनाएँ देशभर में सुनकर बड़ा आश्चर्य होता था पर जब वही घटना अपने ही घर में घटित हो जाये तो विश्वास पस्त हो जाता है। ईश्वर से प्रश्न करने की उत्कंठा और तीव्र हो जाती है। पर जवाब जब कुछ भी नहीं मिलता तो यही कह कर खुद को दिलासा दिया जाता है कि " जो होता है अच्छे के लिए होता है !"
पहली घटना की तिथि 10 और दूसरी घटना, पहले के तत्काल पश्चात हुयी यानि उसी शाम को। मतलब पहली घटना का रायता अभी सिमटा भी नही था तब तक ये घटना घटित हो गयी। गाँव निकलने से पहले यही बातचीत हो रही थी कि UPP की भर्ती आ रही है, 2 महीने जमकर तैयरी कर लो १२ को पेपर देने के बाद और थोड़ा व्यायाम भी शुरू कर दो। इसी बातचीत के बाद मैं वापस लग गयी याद की हुई चीजों को समेटने में। तबतक फ़ोन आता है कि वापस लौटते वक्त भैया का एक्सीडेंट हो गया। भाईसाब जो दिमाग डिस्टर्ब हुआ ना। एकदम दिल ऐसा धक् धक् होना शुरू हो जाता है। फ़ोन करके पता किया गया तो पता चला मामला सीरियस है। यहाँ से पिता जी छोटे भाई के साथ निकले गाँव के लिए तुरंत। वहां जाने के बाद पता चला कि हुआ यूँ कि बाइक से जाते वक्त बीच रास्ते से सियार गुजर रहा था। रास्ता उसने पूरा पार कर ही लिया था कि गाड़ी का हॉर्न सुनकर राम जाने उसके मन में क्या आया वो झटके से वापस लौटा। इतने में निश्चिंत हो चुके भैया कि सियार ने रास्ता क्रॉस कर ही लिया है सकपका गए और गाड़ी जा लड़ी सियार से। सियार के प्राण तो वहीं पखेरू हो गए। भैया को आयी थोड़ी गंभीर चोटें। थोड़ी नहीं असल में ज्यादा ही। दाएँ हाथ की हड्डी टूट गयी। बायां पैर पूरा खरोच उठा और भयंकर खरोचा है। घाव देखकर इंसान दहल उठे वैसी चोटें हैं।
प्राथमिक उपचार जो हो सका किया गया। उसके बाद दूसरे दिन सुबह-सुबह लेके गए लखनऊ। मेरा सेंटर भी वहीं था तो हम भी निकल लिए साथ में। रास्ते में जाते वक्त बीच में एक बार को इस बात का भी ज़िक्र हुआ कि कहाँ 2 महीने जमकर पढ़ाई की बात हो रही थी और कहाँ यहाँ 2 महीने का बेडरेस्ट मिल गया। लखनऊ अभी पहुँचे भी नहीं थे कि घर से फ़ोन आता है कि माता श्री का पैर स्लिप कर गया और वो गिर गयीं हैं। अब पता नहीं नस इधर-उधर हुई या क्या मसला हुआ घुटने में सूजन आ गयी। घर पर छोटे भाई के अलावां कोई था भी नहीं। और उसका होना या ना होना एक बराबर है। अकेले करता भी क्या !! लखनऊ में दादी पहले से एडमिट थीं तो उसी हॉस्पिटल में भैया को भी एडमिट करा दिया गया।
दूसरे दिन पेपर देने गयी जो भयंकर गर्मी थी। न तो उनकी (संस्था की) AC चल रही थी ना तो प्रॉपर वेंटिलेशन था। हर १० मिनट पर बेहोशी छा रही थी। मुझे लग रहा था केवल मेरे ही साथ ऐसा हो रहा है लेकिन एक के बाद एक बच्चे बीच बीच में कई बार उठकर गए बाहर पानी पीने, मुँह धोने। जबकि एक बार CBT या offline मोड में ही पेपर शुरू होने के बाद बीच में जाने की अनुमति नहीं होती। जो हल्ला मचा हुआ था बीच पेपर में ही। ध्यान कई बार भटका। ऊपर से जो पढ़ा था कुछ भी नहीं आया। इस बार पेपर पैटर्न इस तरह चेंज हुए हैं पूरे स्टेटमेंट बेस्ड प्रश्न ही थे। जो मैं सामान्यतः स्किप कर देती हूँ। इसे भी मैं अपनी ही गलती मानूँगी क्योंकि हम में से ही कोई बच्चा होगा जिसके इतने प्रश्न सही होंगे कि कटऑफ के आसपास भी नहीं भटकेगा मेरा नंबर !! गोड़ तो आये ही हैं बाकी ईश्वर की मर्जी। पेपर देकर उसी दिन घर के लिए निकल लिए वापस। और आज ये सारी वार्तालाप बैठकर कर रही हूँ तुमसे।
अनिश्चितताओं से ही भरा हुआ है जीवन। पहले से की गयी तैयारियाँ बहुत कम ही काम आती हैं। जो इन अनिश्चिताओं में अडिग खड़ा रह पता है वही सफल होता है !!
विदा दो अब। ख्याल रखना अपना।