प्रिये संग्रहिका,
गुस्से की भेंट चढ़ी बहने !
तुम्हारी दो बड़ी बहनों को गुस्से की भेंट चढ़ा चुकी हूँ। तुम्हारे तक भी उस गुस्से की लपटें पहुँचने ही वाली थीं लेकिन शुक्र मनाओ तुम्हारी बड़ी बहनों ने तुमको बचा लिया। उनकी भेंट ने ही मेरे हृदय में इतना अधिक कंपन पैदा किया कि मेरे पैर, नहीं-नहीं हाथ, तुम तक आते आते वहीं स्तब्ध हो गए।
मनुष्य के सबसे बड़े दुश्मन !
काम, लोभ, क्रोध, निद्रा - ये चारो ही मनुष्य के सबसे बड़े दुश्मन होते हैं। और ये सभी आजकल मेरे दुश्मन होते जा रहे हैं। पर इनमे से एक दुश्मन मुझसे सर्वाधिक प्रेम करता है , जो बचपन से मेरे साथ है। और वो है क्रोध - इसने मेरा बहुत नुकसान करवाया है। बचपन में तो इसकी अवधि बहुत कम हुआ करती थी , दिक्कत बस इतनी थी कि तुरंत तुरंत सक्रिय हो जाया करता था। बहुत नुकसान झेलने के बाद मैंने इससे छुटकारा पाने के लिए मैडिटेशन वगैरह ट्राई किया। कुछ सालों तक तो ये कण्ट्रोल में रहा लेकिन पिछले एक साल से ये वापस मुझपर हावी हो गया है।
प्राइवेसी !
बात ज़रा सी थी , लेकिन मेरे लिए थोड़ी बड़ी थी। ऐसी कुछ जगहें हैं मेरे जीवन में जहाँ मैं नहीं चाहती कि किसी का भी इंटरवेंशन यानि दखल अंदाज़ी हो ! पर शायद से मिडिल क्लास फैमिली में प्राइवेसी नाम की चीज सच में बड़ी कम ही मिलती है। या कह लो मिलती ही नहीं है। बस उसी प्राइवेसी नाम का हनन मेरी गैरमौजूदगी में, मेरे फ़ोन में घुस कर किया गया। फिर क्या था कहीं का गुस्सा कहीं और उतर गया। और मेरी १० साल पुरानी डायरी जो मैं २०१५ से लगातार मेन्टेन कर रही थी , वो जल कर स्वाहा हो गयी। ना जाने कितनी ही अबोध बातें, खूबसूरत सपने और कोलाहल से भरे भावनाओं का वो संग्रह पल भर में भस्मीभूत हो गया। पन्ने फाड़ते वक्त हाथ तो खूब काँप रहे थे लेकिन उस पीड़ा का अनुभव बहुत ही कम हो पाया जो शायद होश में होने पर बहुत अधिक होता।
बलि !
और उसके बाद तो एक - एक करके इंस्टाग्राम, व्हाट्सप्प, राइटिंग ऐप्स सब बलि की बेदी पर भेंट कर दिए गए। जिसमे व्हाट्सप्प का तो रेस्क्यू ऑपरेशन करके वापस उसमें प्राण फूंक दिए गए। लेकिन इंस्टाग्राम का सोचती हूँ कि बंद ही रहने दूँ थोड़े दिनों। आराम कर ले वो भी। इंस्टाग्राम बंद करने की बात सिर्फ एक ही व्यक्ति को बताई थी वो भी पता नहीं क्यों !? जबकि उससे मेरी कभी बात भी नहीं होती बस एक ही बार हुई थी वो भी काम के सिलसिले में। लास्ट टाइम जब इंस्टा रेअक्टिवेट किया था तो सोचा था अब एक्साम्स होंगे तो भी डीएक्टिवेट का ख्याल मन में नहीं लाऊंगी। लेकिन देखो ! गुस्से के आगे भला मेरी कभी चली है जो अब चल जाती।
शुभचिंतक !
कुछ साथी जो सच में मेरे शुभचिंतक हैं उनका कॉल भी आया कि "क्या बात हो गयी भई अचानक सब कुछ हड़ताल पर क्यों !?" कईयों से तो माफ़ी माँगनी पड़ी। बनता भी था, क्योंकि कई काम मेरी वजह से रुक जाते। और जब आप किसी काम की जिम्मेदारी उठायें तो उसको पूरा करने की निष्ठा भी रखनी चाहिए। ये नहीं कि भावनाओं में बहकर आज से दुनियादारी ख़त्म ,लोगो से मिलना जुलना, बात चीत करना बंद। ऐसे थोड़ी काम चलता है। पर मुझे कौन समझाये !! और कलम मित्र से तो अलग से स्पेशल माफ़ी बनती है , क्योंकि बिना किसी सूचना के अचानक यूँ गायब हो जाना गलत तो है !! २ दिन तो उनके लेख भी नहीं पढ़े गुस्सा इतना सिर चढ़ा हुआ था , लेकिन तीसरे दिन जब थोड़ा थोड़ा शांत हुआ तब कुछ खाली खाली सा लगा। उसके बाद तो सारे लेख पढ़े उनके, छूटे हुए। उनका मानना है कि मैं तो आती जाती रहती हूँ सोशल मीडिया पर। ये तो मेरी आदतों में शुमार है। ख़ैर उनकी बात से इत्तेफ़ाक़ ना भी रखा जाये तो कैसे !? क्योंकि हकीकत तो यही है !! और तुमसे बेहतर तो कौन जानता है ये बात !? मेरा इंतज़ार महंगा है , बहुत महंगा। बहुत कुछ ताक पर रखना पड़ता है !! और मैं कोई इतनी भी जरूरी नहीं जिसके लिए सुकून ताक पर रखे कोई !!
मूर्खता !
वास्तव में गुस्सा शांत होने के बाद पता चलता है कि कितनी बड़ी मूर्खता का काम हो गया नशे में। कितना बड़ा नुक्सान हो गया ! और अब शायद पछताने से भी कोई फ़ायदा नहीं। क्यूँकि जो चीज जा चुकी है वो वापस नहीं आने वाली है। ऊपर से परिवार वालों से गुस्सा अलग ! बाद में समझ आता है कि नाजायज़ गुस्सा है , इन लोगों से रूठकर आखिर कहाँ जायेंगे !? बस कुछ चीज़ें बर्दाश्त नहीं होतीं। पर कोई बात नहीं सह लेंगे वो भी !!!
चलो अब विदा दो।
शुभरात्रि !
आऊँगी फिर....