" बच्ची अब बचबै ना ! " ( यही आखिरी बात हुई थी अम्मा से दो दिन पहले। )
" अम्मा यस काहे कहत हू !! " ( और मैं इस वाक्य के आगे कुछ बोल ही नहीं पायी , गला रुंध गया था। )
१ महीने पहले यहीं थीं अम्मा। लेकिन परीक्षाओं के चलते ज्यादा बात चीत नहीं हो पाती थी। फिर भी बहुत कोशिश रहती थी कि जितना संभव हो सके उनके साथ बैठ सकूँ। जबसे बीमार हुईं अम्मा ज्यादा बोलती भी नहीं थीं ना ही कोई बातचीत करती थी किसी से। वरना तो हमेशा ही उनका पिटारा खुला रहता था किस्से, कहानियों और पंचायतों से। शायद बीमारी इंसान को शांत और गंभीर भी बना देती है। और मधुमेह जैसी बीमारी तो शरीर के साथ-साथ मन की इच्छाशक्ति को भी खोखला कर देती है। इसी बीमारी के चलते उनके आँखों की रौशनी भी चली गयी थी। लेकिन २ महीने पहले उसका भी ऑपरेशन कराया गया था। और उसी ऑपरेशन के बाद से अम्मा का स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता रहा। लखनऊ ही भर्ती थीं तबसे। संयोग से मेरी परीक्षा का सेंटर भी लखनऊ गया था तो उनसे भेंट हो गयी थी वहाँ। आखिरी बार उनके बाल भी वहीँ बनाये थे ! उसके बाद भेंट का अवसर ही नहीं मिला !
पिछले एक हफ्ते से जब भी फ़ोन की घंटी बजती दिल ज़ोरों से धड़कने लगता। और उसपर भी अगर घर से किसी का फ़ोन होता तो कलेजा मुँह को आने लगता। आज की एक कॉल से ये सारी उठा पटक समाप्त हो गयी। हालात से सभी परिचित थे लेकिन उम्मीद की किरण सबको थामे रखी थी। किसी करिश्में के इंतज़ार में हर कोई आँखें गड़ाए बैठा था। लेकिन अब नहीं। अब सबकी उमीदें बेबुनियादी ढाँचे की तरह ढह गयीं।
जिस तरह बड़े बड़े पत्थरों वाली दिवार एक छोटे से ARCH STONE पर टिकी होती है, उसी तरह हमारा इतना बड़ा परिवार भी टिका हुआ था अम्मा के ऊपर। आज हमारे इतने बड़े परिवार से वो ARCH STONE नियति ने बड़ी ही निर्दयता से निकाल दिया।
मेरा मन अब व्याकुल नहीं है शांत है। पर एक पीड़ा अंदर एकत्रित हो गयी है। घर पर कोई नहीं है। गाँव भी सुबह निकलना है। ऐसे समय पर फ़ोन मिलाऊँ भी तो किसको ! मेरा मन इतना मजबूत नहीं है कि यहाँ अकेले बैठे किसी की सिसकियाँ सुन पाऊँ। आज समय भी इतना धीरे चल रहा है। नींद का दूर दूर तक आँखों में कोई नामो निशान नहीं है। बस रह रहकर कुछ बातें याद आ रही हैं। अम्मा का चेहरा बार-बार आँखों के सामने आ जा रहा है। आँखें रह रह कर नम हो जा रही हैं।
इंसान साथ लेकर कुछ भी नहीं जाता। बहुत कुछ पीछे छोड़ जाता है। लेकिन वो पीछे छोड़ी हुई चीजें इतनी पर्याप्त नहीं होतीं कि वो जाने वाले की खाली जगह को भर सके !!
मन संकुचित होता जा रहा है !!!