DIARY
" मनुज मन बड़ा बावरा जाकी उल्टी चाल, जो बाँधे उसको त्यागे जो त्यागे उसका गुलाम ! "
प्रिय संग्रिहका, बस अभी-अभी घर के लिए निकली हूँ प्रयाग से । पता नही तुमको बताया था या नही, पर हाँ अब आगे की जीवन यात्…
September 04, 2025
प्रिये संग्रहिका , अस्वीकारता बहुत मुश्किल होता है कुछ चीज़ों को स्वीकार पाना। दिल और दिमाग दोनों ये मानने को तैयार ही नहीं हैं कि अम्मा नहीं हैं। बीते 15-20 कैसे गुज़रें हैं ये मुझे खुद को नहीं पता। घर में जिसको देखो उसी की आँखें नम रहती थीं। इसीलिए किसी की …
Svaghoshit Lekhika
" बच्ची अब बचबै ना ! " ( यही आखिरी बात हुई थी अम्मा से दो दिन पहले। ) " अम्मा यस काहे कहत हू !! " ( और मैं इस वाक्य के आगे कुछ बोल ही नहीं पायी , गला रुंध गया था। ) १ महीने पहले यहीं थीं अम्मा। लेकिन परीक्षाओं के चलते ज्यादा बात चीत न…
Svaghoshit Lekhika
प्रिय संग्रिहका, बस अभी-अभी घर के लिए निकली हूँ प्रयाग से । पता नही तुमको बताया था या नही, पर हाँ अब आगे की जीवन यात्…