प्रिय संग्रहिका ,
बड़ी तीव्र इच्छा है पुनः आरम्भ करने की। कुछ गलतियाँ, कुछ भूल पूर्वरत/undo नहीं किये जा सकते हैं।
कुछ पन्नो के दूषित होने पर, कई बार, पन्ने नहीं फाड़े जाते, बल्कि पूरी की पूरी किताब ही फेंक देनी पड़ती है !! मेरे पास भी एक किताब है, जिसके कुछ पन्ने दूषित हो गए हैं। और मैं उस किताब को फेंक देना चाहती हूँ।
मुझे नहीं पता कि...मुझे दुबारा वही किताब मिलेगी या नहीं ; पर फ़िल्हाल... मुझसे यह किताब संभल नहीं रही है। जितने पन्ने पलटती जाती हूँ, उतने पन्नों पर दाग की छाप छूटती जाती है।
* घातक लालसा *
बस एक ही बार..
उजालों से मुँह चुराकर,
अंधकार को देखने की लालसा में,
उसकी ओर मुख किया था।
फिर तो अन्धकार ने ऐसा छला कि
उसकी गोद में जा बैठी।
और बैठते ही इतनी गहरी नींद आयी कि
उजालों की स्मृति भी सपनों से गायब हो गयी।
बीच में, कई बार उजालों ने पुकारा मुझे।
कई बार तो मुझे सुनाई नहीं पड़ा...
और कई बार तो मैंने स्वयं ही अनसुना कर दिया।
अब जबकि उजालों ने पुकारना बंद कर दिया है ,
अंधकार की पकड़...
मुझपर उतनी ही जटिल होती जान पड़ती है।
ये जटिलता जितनी अधिक होती जा रही है,
मुझे उतना ही व्याकुल करती जा रही है।
मैं अपनी उँगलियाँ छुड़ाकर,
अंधकार के चंगुल से भाग जाना चाहती हूँ।
लेकिन, जितनी तीव्र गति से,
उजालो की ओर अपने पाँव बढ़ाती हूँ,
उतनी ही तीव्र गति से, अंधेरों के साये,
मेरे पीछे दौड़े चले आते हैं।
अभी थकी नहीं हूँ मैं !
जबतक उजालों की चमक
मेरी स्मृतियों में जीवित है;
मैं खोजती रहूँगी उसको।
कभी-कभी आशाएँ...
जरूर धूमिल होती दिखाई पड़ती हैं,
मन थोड़ा विचलित भी हो जाता है।
लेकिन फिर मन को ढांढस बंधाते हुए
अपने कदम आगे बढ़ाती जाती हूँ।
भय तो उस रोज का है मुझे,
जिस रोज उजालों की स्मृतियाँ,
धुंधली होते-होते पूर्णतः तिरोहित हो जाएँगी।
उस रोज की भी,
पूरी तयारी कर रखी है मैंने।
जिस रोज़ ऐसा होगा,
मैं अन्धकार से,
अपनी उँगलियाँ छुड़ाने का संघर्ष,
त्याग दूँगी।
और उजालों को,
याद करने की चेष्टा किये बिना,
अंधकार की गोद में,
सर्वदा के लिए सो जाऊँगी,
फिर कभी अँधेरे का मुख
" ना देखने " का स्वपन,
आँखों में कैद किये !!!
तुमसे मिलने की लालसा भी संभवतः ही उस रोज़ मुझे रोक पाए। तुम्हारा आलिंगन, मेरी देह से, अंधकार की गंध थोड़ी देर के लिए ही सही, कम से कम मिटा तो देता है। ढेर सारा प्रेम सखी। विदा दो अब, वक्त हो गया है फिर से अंधकार की गोद में जा बैठने का !!