प्रिय संग्रहिका ,
तुम्हारा उत्तर मिला, मेरे पिछले ब्लॉग में पूछे गए प्रश्न का। मैंने पूछा था...
" कैसी हो ? "
तुम्हारा जवाब आया -
" तुमसे अच्छी हूँ। "
इससे अधिक तुमने कुछ लिखा ही नहीं। अब इन तीन शब्दों से मैं क्या अर्थ निकालूँ ?
मेरे हालात से बेहतर हालात हैं तुम्हारे, इसलिए अच्छी हो ?
मेरी तक़दीर से बेहतर तक़दीर है तुम्हारी, इसलिए अच्छी हो ?
मेरे मानसिक संतुलन से अधिक संतुलित तुम्हारा दिमाग है, इसलिए अच्छी हो ?
या फिर मुझसे अधिक अच्छा हृदय है तुम्हारा, इसीलिए अच्छी हो ?
बताओ क्या मतलब निकालूँ !?
चलो बताओ , कोई मेरे लिखे इतने लम्बे ब्लॉग्स क्यों ही पढ़ेगा ?
मैं अक्सर सोचती थी ये मेरे तुम्हारे बीच की बकवास कोई क्यों ही पढ़ना चाहेगा ? निरा बकवास ही तो होती हैं। कभी कोई सार्थक बात निकल आये तो वो महज एक इत्तेफ़ाक ही माना जाना चाहिए।
तो मेरे इस सवाल का जवाब हाल ही में मुझे मिला, मेरे कलम मित्र के ब्लॉग पोस्ट्स देखने के बाद। आजकल तो धूम मचा कर रखी है उन्होंने। कोई नया नया भी हो लेख पढ़ने की दिशा में तो उसे रुचिकर जान पड़ेगा। मेरे लिए तो उनके लंबे ब्लॉग पढ़ना कोई चुनौती भरा काम नहीं, क्योंकि मेरी तो आदत पड़ चुकी है, लेकिन सच बताऊं तो कभी-कभी मेरा भी जी ऊब जाता था, जब भी दिन के अंत में उनके ब्लॉग्स पर पहुँचती थी। वही लम्बे पैराग्राफ्स वाले ब्लॉग्स होते थे। पढ़ने से पहले ही थक जाती थी। लेकिन फिर, कलम मित्र ने शायद इस चुनौती को पहचाना और अपने ब्लॉग्स में एक क्रांति ही ला दी। उनका मानना है कि ये सब चैट जीपीटी की देन है। पर मैं तो कहती हूँ कि इस क्रांति में चैट जीपीटी से अधिक उनके ही दिमाग को श्रेय जाता है। आखिरकार चैट जीपीटी को कोई टास्क देना भी तो एक बड़ा टास्क है।
और रही बात "कोई मेरे लंबे ब्लॉग्स क्यों ही पढ़ेगा" की, तो तुम बताओ....
तुम मुझे क्यों सुनती हो ?