प्रिये संग्रहिका ,
उलझन में हूँ। मन के कारण। लोग सही कहते हैं , हमारा सबसे बड़ा शत्रु हमारा मन ही है। और यदि हम उसके कहे अनुसार काम करना शुरु कर देते हैं तो विनाश तेजी से प्रारम्भ हो जाता है। एक पल को तो ये मन किसी चीज को लेकर उत्कंठित हो उठता है दूसरे ही पल वो चीज सामने हो फिर भी उसे नजर उठा कर देखता तक नहीं। यही मन अगर किसी व्यक्ति पर आ जाये तो बड़ी मुश्किल होती है। फिर यहाँ वो नियम चलता है, 'मन से मन का मिलना'। पर ये मन आखिर कब तक मिले रह सकता है। हर मन की अपनी अपनी चाल है, और हर चाल की अपनी एक गति। मेल से शुरू होकर बेमेल पर ख़त्म हो जाता है , ये मन ! और परेशानियाँ यहीं से शुरू होती हैं। चलो बड़ा लेक्चर हो गया मन पर। आज तुमको एक मूवी के बारे में बताती हूँ।
मूवी है मिसेज, इसमें वही कहानी है जो अक्सर मुझे रास आती है। वीमेन, महिला, स्त्री, औरत , जो मर्जी हो कह लो। स्त्री और उसका संघर्ष। घर संभालना बेशक स्त्री का काम माना जाता हो, पर ऐसा हुआ करता था, अब नहीं है। स्त्रियों के पास जब कोई और काम नहीं था तब घर के काम उससे बखूबी संभाले जाते थे। तब काम बँटे हुए थे, स्त्री और पुरुष के। अंग्रेजी में बोले तो, तब सेपरेट रेस्पॉन्सिबिलिटीज़ थीं और आज शेयर्ड। मूवी में दर्शाया गया है कि किस तरह शादी के नाम पर स्त्रियों के साथ स्कैम होता है। मूवी का मकसद यही था , जो मैंने पूरा पूरा पकड़ लिया। रिलीज़ होने से पहले भी सोशल मीडिया पर पूरा माहौल बनाया दिया गया था मूवी के इर्द गिर्द कि लोग इसी नजरिये से देखें ,मुख्यतः स्त्री वर्ग। तो मुझपर भी इस माहौल का असर हुआ ही । और उससे भी अधिक, मैं रोज उसी संघर्ष की कल्पना से डर जाती हूँ। एक ऐसा संघर्ष, जो मुझे व्यक्तिगत तौर पर कोई लाभ न पहुंचाए। त्याग आवश्यक है महान बनने के लिए , लेकिन हर बार अपना त्याग नहीं।
मूवी में, लड़की बचपन से नाज़ों से पली बढ़ी है। उसको सपने देखने की छूट थी, बगैर सांसारिक बंधन के। आजकल की लड़कियां भी बिगड़ गयी हैं। पति और ससुराल की सेवा के सपने ही नहीं देखतीं। नहीं देखतीं , कि ब्याह के बाद वो ससुराल में अपने सास की सारी ज़िम्मेदारी खुद उठाएँगी , पति की सेवा करेंगी , वो ऑफिस जाये उससे पहले घर का सारा काम खत्म करके उसके लिए मीठी सी चुम्मी भी तो तैयार रखनी होगी। 2-4 छोटे छोटे बच्चों को पालने के स्वप्न भी नहीं देखतीं। सचमुच आज कल की लड़कियाँ बिगड़ गयी हैं। कुछ हैं जो इसके स्वप्न भी देखती हैं लेकिन इसको प्राथमिकता नहीं देतीं, क्योंकि इसके साथ साथ एक और स्वपन देखती हैं , स्वयं के लिए। स्वार्थी लड़कियाँ !! मूवी में जो लड़की है वो भी स्वार्थी है। उसका ब्याह हो जाता है। शायद उसने भी ब्याह के सपने देखे थे। ब्याह के वक्त काफी खुश नज़र आ रही थी। पति गायनेक था यानि स्त्री रोग विशेषज्ञ। ब्याह कर अपने ससुराल जाती है , लेकिन लड़कियों वाले कोई गुण नहीं थे उसके अंदर , सिवाय प्रेम और सम्मान से बात करने के। मायके में नाज़ों से पली थी। या यूँ कह लें कि माता पिता ने कल्पनाओं वाली दुनिया में पाला था उसे। रसोई के कुछ काम नहीं सिखाये। नृत्य में रूचि जगा ली थी सो अलग ! लापरवाह माँ बाप ने रोका भी नहीं। डाँट डपट कर घर के कामों में लगाया होता तो क्या घर के काम ना सीख गयी होती !! अब ससुराल में देर से उठती है। सास के हाथ तो बँटाती है लेकिन लगभग काम बिगाड़ देती है। धीरे धीरे सास को देख कर ससुर और पति के मन पसंद की चीजे बनाना सीखती है। लेकिन सीखने की गति काफी धीरे है। कहा ना , आज कल की लड़कियाँ। वैसे तो बहुत तेज हैं लेकिन रसोई के काम में हाथ तंग हो जाते हैं। आगे होता ऐसा है कि सास अपनी बिटिया के घर चली जाती है क्यूंकि उसका प्रसव समीप होता है। अब लड़की घर में अकेले। कामकाज भी सारे अकेले ही करने पड़ रहे थे। लेकिन एडजस्ट करने में दिक्कत आ रही थी। वहीँ उसकी सास अकेले सारा काम कर डालती थी , उम्रदराज़ होने के बाद भी। लेकिन ये आजकल की लड़कियां ! उसपर मोहतरमा को अपने नर्तकी की याद आने लगती है। उसके ही बैंड ग्रुप की एक लड़की को कोरियोग्राफी का ऑफर तक आ जाता है, जिसको बैंड ज्वाइन करने के लिए यही घसीट कर लायी होती है। अब दीदी के मन में सो चुकी अभिलाषाएँ वापस जागृत होती हैं। दीदी ( अरे दीदी यानी वही लड़की, मूवी वाली ) को अब जॉब करना है। और वो भी किसका डांस टीचिंग का। सोचने से पहले शर्म तक नहीं आयी कि ब्याह के बाद नाचना ठीक नहीं लगता लड़कियों का ! उसपर ससुर ने मना किया तो मुँह फुलाकर बैठ गयीं। एक दिन बेचारा पति थका हारा सारा दिन काम करके घर आया, तो उसके भी अपने अरमान है भाई, उसकी भी कुछ शारीरिक जरूरतें है, लेकिन मोहतरमा किचन में काम ही नहीं ख़त्म कर पाती हैं जल्दी। उसपर बेचारा पति इतनी देर तक इंतज़ार करता है तो आकर कहती हैं मन नहीं, थक गयी हूँ। इधर बेचारे पति की जगी हुई उत्कंठा आखिर कैसे शांत हो ? उसने भी मजबूर होकर जबरदस्ती की। तो उसको पीछे ढकेलते हुए कहती हैं दर्द होता है। What do you mean by 'दर्द होता है' !? अरे पति है वो तुम्हारा, कर्तव्य बनता है तुम्हारा कैसी भी परिस्थिति में उसकी सारी जरूरतों को पूरा करने का। लेकिन जैसा कि मैंने कहा ना , ये आजकल की लड़कियाँ !!
अंत में दीदी उठाती हैं एक्सट्रीम कदम। और पिला देती हैं, अपने ससुर के जन्मदिन वाले दिन, मेहमानों को लीकेज से चूता हुआ पानी, शिकंजी के नाम पर ! और भाग जाती हैं दीदी ससुराल छोड़कर। बताओ भला ऐसे भी कोई करता है क्या !? थोड़ा ही तो घिसना था। अब नौकरी करोगी तो, ससुर को सिलबट्टे की पीसी हुयी चटनी बनाकर कौन देगा ? पति वापस घर आएगा तो उसको जरुरत की चीजे लाकर उसके हाथ में कौन पकड़ायेगा ? थोड़ा सा एडजस्टमेंट नहीं कर पातीं हैं। अपनी पहचान बनाने के आगे इन सब जरूरी कामों को अनदेखा कर देती हैं। और मूवी में जो दीदी हैं वो तो ठुकरा कर ही चली गयीं। इतने सौभाग्य से पति और ससुराल वालों की सेवा करने का अवसर मिलता है , लेकिन नहीं ! हमको तो अपने सपने पूरे करने हैं , अपनी पहचान बनानी है। देखना पछताएंगी , ससुराल छोड़कर भाग गयी सपनों के पीछे !! ये आजकल की लड़कियाँ भी ना। महत्वाकांक्षी होती जा रहीं हैं ! बड़ा नुकसानदायक है ये अपने देश और समाज के लिए !!
कौन समझाये इन लड़कियों को, जरा भी अकल नहीं ! अब तुम्ही बताओ ये आजकल की लड़कियाँ स्वार्थी हैं कि नहीं !!?
व्यंग्य अच्छा है। तार्किक है, लेकिन एकतरफा है... और निखर आता यदि इसमें पुरुष का भी दृष्टिकोण डालते.. मजेदार था यह....!
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