प्रिये संग्रहिका,
कैसी हो ? क्या मेरी भाषा तुम्हारे भी पल्ले नहीं पड़ती ? इतनी कठिन भाषा इस्तमाल तो नहीं करती हूँ। मुझसे अक्सर लोग कहते हैं, लिखते समय इतनी हिंदी मत लिखा करो कि सामने वाला पढ़ना ही ना चाहे। पर ये मैं जानबूझ कर नहीं करती हूँ। मैंने बचपन से ही ऐसी हिंदी का प्रयोग किया है लिखते समय। और मुझे इसमें कुछ भी असामान्य नहीं लगता। यहाँ तक कि बोलने में भी ये हिंदी मेरे घर में काफी सामान्य है। उसमे भी मेरे ही चलते अंग्रेजी के काफी शब्दों का प्रयोग हो जाता है वरना तो ऐसी ही मिश्रित हिंदी अंग्रेजी और उर्दू शब्दों वाली भाषा ही बोली जाती है। फिर भी लोगों की अपनी अपनी मान्यताएँ हैं। अपना अपना वातावरण है। " अब भैया हमारे लिए जो चीज सामान्य है वो तुम्हारे लिए सामान्य नहीं है तो हम का करें !!? "
रेडियो की ट्रेनिंग में फील्ड वर्क के लिए गयी थी कल। विषय था " वैलेंटाइन वीक मनाना चाहिए या नहीं मनाना चाहिए ?" इसी पर लोगों की क्या राय है वही पूछना था। हमारी टीम दो हिस्सों में बँटी थी। एक टीम का एरिया कॉलेज का बीएससी कैंपस था और दूसरे का गाँधी पार्क। मैं कॉलेज कैंपस वाली टीम में थी। पहला एक्सपीरियंस विथाउट गाइड फील्ड वर्क का। पहली बात तो ये विषय सुनकर ही लोग दूर भाग जा रहे थे। हम खाली इतना ही बोलने पाते थे कि " वैलेंटाइन वीक " तबतक सामने वाला हाथ जोड़कर ये कह देता था कि " भैया हम इ सबसे बहुत दूर रहित है हमसे न पूछो इ कुल " हमारा प्रश्न भी नहीं पूरा होने पाता था कि आपकी राय जाननी है कि वैलेंटाइन वीक मनाया जाना चहिए या नहीं ? ये हाल तो लड़को का था। पर भाईसाहब लड़कियाँ , उन्होंने तो इसका नाम सुनते ही ऐसी प्रतिक्रिया दी कि फिर किसी और लड़की से ये प्रश्न पूछने से पहले १० बार सोचना पड़ा। कुल मिला कर हमारे समाज में ये शब्द ही दूषित है। तो इसको मनाये जाने का प्रश्न तो उठना ही नहीं चाहिए। चलो तुमको कुछ लोगों के जवाब बताती हूँ जिन्होनें भागने के बजाय इस पर उचित तर्कों के साथ अपना पक्ष रखा। कुछ लोगों ने बताया कि क्यूंकि ये हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं है इसीलिए नहीं मनाया जाना चाहिए। कुछ लोगों ने बताया कि पहली बात तो इसके पीछे की आज के समाज की अवधारणा देखी जाये तो वो बहुत दूषित है। युवाओं में तो इसका अर्थ ही बिलकुल अलग है जो हमारे समाज के नियमों के विरुद्ध है इसलिए भी ये नहीं मनाया जाना चाहिए। कुछ थोड़ा भावुक किसम के इंसान थे वो तो कैमरे पर ही चढ़ गए, कहते कहते कि " ये पाश्चात संस्कृति का बढ़ता वर्चस्व है, हमें ये केवल मनाये जाने का ही विरोध नहीं बल्कि इसको समाप्त करने के कठोर कदम उठाने चाहिए।" कुछ लोगों ने कहा कि इसको मनाने वाले लोगों को पकड़ कर पीटना चाहिए। तो कुल मिलाकर इस विषय का लगभग लोग विरोध करते ही दिखे। व्यवहारिक तौर पर तो राम ही जाने पर ऑन कैमरा तो करते ही दिखे।
कुछ लोग थे जिन्होंने इसका समर्थन भी किया। वो कुछ लोग उँगलियों पर गिने जा सकते हैं। सिर्फ एक ही हाथ की उँगलियों पर। एक लड़की ने बताया कि " वैलेंटाइन वीक मनाया जाना चाहिए लेकिन अपने परिवार के साथ। आप अपने परिवार के प्रति प्रेम प्रकट करें, उनके साथ समय व्यतीत करें। ये गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड वाला कल्चर गलत है। " एक और लोग से बात हुई तो उन्होंने कहा कि " संस्कृतियों का संगम होगा तभी नयी संस्कृति का विकास होगा, हमें बिल्कुल मनाना चाहिए, लेकिन " ( इन्होने भी यहाँ 'लेकिन' का प्रयोग किया , हमारी टीम एक बार फिर सस्पेंस से भर गयी कि इनका लेकिन कौन सी कंडीशन रखने वाला है। ) उन्होंने आगे कहा " लेकिन एक बात युवाओं को ध्यान में रखना चाहिए आजकल तो ये पर्व युवाओं के मध्य ही अत्यधिक प्रचलित है , उसी गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड के अंतर्गत। तो उन्हें ये ध्यान रखना चाहिए कि उनके मध्य सम्बन्धो के विषय में दोनों पक्षों के घरवालों को जानकारी होनी चाहिए ताकि कहीं घूमते पकड़े जाएँ तो बाद में इस बात की जिल्लत न सहनी पड़े कि घरवालों को पता चल जायेगा। " मुझे इनका ये तर्क औरों से काफी अलग लगा लेकिन थोड़ी हँसी भी आयी कि कौन से माँ बाप इस समाज में इतने खुले विचारों के हैं कि अपने बच्चों के इस प्रेम सम्बन्ध को स्वीकार करें। समाज भी इन सम्बन्धो की स्वीकृति नहीं देता। यहाँ तक कि इतना प्रोग्रेसिव और ओपन माइंडेड होने के बाद भी मेरे विचार इस सम्बन्ध पर काफी संकीर्ण है। ख़ैर ये तो अलग से चर्चा का विषय है। कुछ लोगों का मनना ये भी था कि क्यों किसी के घर की लड़कियों को बहला फुसला कर इन सब गलत कामो में फ़साना।
कुछ तर्कों को सुनकर मुझे बहुत ज़ोरों की हँसी आती है , इतनी कि मुझसे कण्ट्रोल नहीं हो पाती। मुझे नहीं समझ आता कि 18 -20 वर्ष की लड़कियों को कोई कैसे बहला फुसला सकता है ? क्या उनमें इतनी समझ नहीं होती कि उनको अपना अच्छा बुरा नज़र आये। चलो एक बार को मान भी लिया कि कुछ लोगों का मानसिक विकास या चीजों को समझने की क्षमता बहुत देर में विकसित होती है , तो फिर उन्ही 18-20 वर्ष की लड़कियों का विवाह करके उन्हें पति और घर संभालने योग्य कैसे समझ लिया जाता है !? यदि इतना पढ़ने लिखने दुनिया देखने के बाद भी किसी के अंदर उस उम्र में समझ नहीं विकसित हो पा रही है तो बाद में समझ विकसित करके क्या करेंगे ? अपने बच्चो की लाइफ कण्ट्रोल करेंगे ? मैं भले ही रिलेशनशिप की समर्थक नहीं हूँ पर मुझे लगता है कि इतने सारे संबंधों को जन्म से साथ लेकर आने के बाद भी यदि ईश्वर हमें कुछ सम्बन्धो को चुनने का विकल्प प्रदान कर रहा है तो उसकी जिम्मेदारी हमें स्वयं उठानी चाहिए ना कि माता पिता और समाज पर निर्भर हो जाना चाहिए। देखो मुद्दे से भटक गयी। ज्ञान देने कह दो तो बहुत दे दूंगी मैं, लेकिन जो विषय पूछा है उसे छोड़कर !!
तो कुल मिलाकर वैलेंटाइन वीक मेरी राय में व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि मनाया जाना चाहिए या नहीं। भागती दौड़ती इस जिंदगी में यदि कुछ पल हम अपने प्रिये जनों के साथ ठहर कर महसूस कर पाएँ तो इसमें ये नहीं देखना चाहिए कि वो हमारी संस्कृति का हिस्सा है या नहीं। वैसे भी प्रेम और अपनों के साथ समय व्यतीत करना किसी भी संस्कृति में गुनाह नहीं माना जाता जहाँ तक मुझे पता है। और ये जो कुछ लोग खुद को समाज का ठेकेदार बताते हैं इनकी खुद की नजर प्रश्न पूछ रही युवती से हटती नहीं है और दूसरों को ज्ञान देते हैं। ताड़ने तक कि बात तो अलग इंस्टाग्राम id भी चेहरा स्कैन करके खोज लेते हैं। फिर दनादन सारी पोस्ट पर लाइक ठोक कर चले जाते हैं। कुछ एक कदम आगे भी होते हैं, हर फोटो पर NICE PIC , ब्यूटीफुल , बहुत खूबसूरत आँखें हैं आपकी ", ये सब तक लिख कर जाते हैं। और खुद को समाज का ठेकेदार बताते हैं।
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि हमें अपनी जड़ों से जुड़े रहना चाहिए। लेकिन किसी में अच्छी चीजों हों तो उसको अपनाने में झिझकना नहीं चाहिए। इसका मतलब ये भी नहीं है कि हम अंधाधुन्द किसी की भी संस्कृति को फॉलो करने लगें बिना जाने समझे। थोड़ा रुकिए, साँस लीजिये, तर्कसंगत लगे तो ही उसे आत्मसात करें। केवल इसलिए भी कुछ भी फॉलो नहीं करने लगना है क्योंकि सब कर रहे हैं। बाकि तो लोग समझदार हैं हीं।
चलो विदा दो अब , बहुत हो गयीं बातें। ख्याल रखना अपना।
शुभरात्रि !