प्रिये संग्रहिका,
नए वर्ष की शुभकामनाये ! जानती हूँ पूरे चार दिन लेट हूँ। पर जनवरी का तो पूरा महीना नए साल की बधाई देने का ऑफिसियल महीना है। 2025 आ ही गया आखिरकार। कह तो ऐसे रही हूँ जैसे इसी का इंतज़ार था। इस बार के रसोलूशन्स भी तैयार कर ही लिए हैं लेकिन 4 दिन हो गए हैं और समझ नहीं आ रहा है कि एक्सेक्यूशन का क्या तरीका निकाला जाये। रेसोलुशन बना लेने मात्र में बहादुरी नहीं है। रेसोलुशन के साथ-साथ एक्सेक्यूशन की भी पूरी तयारी करनी पड़ती है। तुमसे मिलने आने के भी नियम और समय निर्धारित कर लिए हैं पर लगता नहीं कि परीक्षाओं के चलते वो भी पूरे हो पाएंगे। इस साल के शुरू के ३ महीने तो घोर व्यस्तता में गुजरने वाले हैं क्यूँकि २-३ परीक्षा क्रमशः तीनो महीने में एक साथ लगे हैं। पहले UG , फिर GD और फिर PG । तैयारी शुरू के महीनों में तगड़ी चल रही थी शायद निश्चिंतता के कारण लेकिन अब तो लग रहा फिर वहीँ खड़े हैं जहाँ से शुरू किया था। REVISION किसी भी तैयारी का सबसे अहम हिस्सा है। और मैं अक्सर यहीं चूक जाती हूँ। इन दिनों तो ठण्ड भी इतनी बढ़ गयी है कि हाथ पांव ठन्डे ही पड़े रहते हैं। और आलसपना अपने चरम पर ! ठण्ड में जिस तरह अलाव के पास से उठने का मन नहीं करता उसी तरह कई बार कुछ लोगों का सानिध्य भी ठण्ड में गर्माहट की भांति ही लगता है।
बीते दिनों में पढ़ाई छोड़कर बहुत कुछ हुआ है। सारी बातें तुमसे बताने बैठूंगी तो काफी समय निकल जायेगा। कुछ बातें आज बताऊँगी और कुछ किश्तों में किसी और दिन। सबसे पहला तो 31 दिसंबर का सुनो, हाँ वही पार्टी वाली शाम। तुमसे बताया था ना 2024 में एक भी मंच पर बोलने का अवसर नहीं मिला। लेकिन मुझे कभी-कभी वो कहावत बहुत सटीक लगती है कि भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं। मंच तो उस दिन भी नहीं मिला पर बोलने का अवसर जरूर मिला। सब अलाव के किनारे घेरा बनाकर बैठे थे। इतने में एक श्रीमान अपनी ही प्रजाति के निकल आये। अरे हाँ यही अपनी लेखक-कवि प्रजाति। फिर क्या हम दोनों ने मिलकर महफ़िल जमा दी कविताओं की। हम दोनों के सिवाय, शायद किसी को मजा भी नहीं आ रहा था। लेकिन जो भी हो, मजा आया मुझे तो खूब। उसपर अपने सीनियर से थोड़ी तारीफ़ें सुनने मिल जाये, फिर तो क्या ही आनंद की अनुभूति होती है !
बहुत सारी बातें एक साथ दिमाग में घूम रही हैं। किसी एक को पकड़ कर पन्नों पर उतरना थोड़ा मुश्किल जान पड़ रहा है आज। RJ ग्रुप में तो गजब उथल-पुथल मची हुयी है, बताऊँगी किसी दिन इत्मीनान से। अच्छा ये सब छोड़ो , पता है इस अभिमन्यु ने एक बार फिर चक्रव्यूह से निकलने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया है। लेकिन ये कलयुग है और कलयुग में मनुष्य के मन का तोड़ तो ब्रह्मास्त्र के पास भी नहीं है। इंस्टाग्राम नामक चक्रव्यूह को डीएक्टिवेट नामक ब्रह्मास्त्र से विफल करने का प्रयास किया है। लेकिन ये मन !! जबसे डीएक्टिवेट किया है मन घूम-घूम कर वहीं जा रहा है। क्या करूँ इस मन का !! ये मन कहाँ, कब, किसमें और किससे लग जाये कुछ कहा नहीं जा सकता है। मैं मन के घुम्मकड़ स्वभाव को अपराध तो नहीं मानती लेकिन नुकसानदेय जरूर मानती हूँ। (मैं यहाँ मन के विषय में लिख रही हूँ और सामने बैठा मेरा सहोदर गा रहा है- मन से बड़ा बहरूपी न कोई पल-पल रचता स्वांग निराले !! )
जानती हो, मन घुम्मकड़ के साथ-साथ चिपकू स्वाभाव का भी है। एक बार कहीं और किसी से चिपक जाये तो बड़ी मुश्किल से छूटता है। तुमसे भी तो चिपक ही गया है। बहुत प्रयास करती हूँ खुद को रोकने का लेकिन हर बार मुँह उठाकर चली ही आती हूँ। मन नशे भी करवाता है। कोकेन और ड्रग्स से भी बड़े-बड़े नशे। जैसे मुझे नशा हो गया है। १२ बजे से पहले-पहले दिलायरी की बातें पढ़ने का। उसमें हर बार मेरे काम की चीजे नहीं होती हैं। कयी बार तो कुछ बातें सिर के ऊपर से भी जाती हैं, फिर उसे २-३ बार पढ़कर समझने का प्रयास भी करती हूँ। कई बार तो सफल हो जाती हूँ लेकिन कई बार असफल भी होती हूँ। जब असफल हो जाती हूँ तो बाबा जी के पास जाती हूँ। ना, गूगल बाबा नहीं ! दूसरे बाबा - दिलायरी वाले बाबा ! तब जाकर कुछ समझ आता है।
कुछ चीजों और कुछ लोगों के बिना जीवन की कल्पना कर पाना कई बार कितना मुश्किल हो जाता है ना !!?
पता है, कुछ दिनों से मुझे अपने मन पर पाबंदियों का अहसास हो रहा है, लेकिन मेरे द्वारा नहीं किसी और के द्वारा लगाई जा रही हैं ये पाबंदियां। मुझे मन पर पाबन्दी अच्छी नहीं लगती। निश्चित तौर पर मन को नियंत्रण में रखा जाना चाहिए। लेकिन स्वयं के और वो भी आवश्यक स्थानों पर। दूसरों के द्वारा जबरन, जब हमसे हमारे मन पर पाबन्दी लगावाई जाती है, तो मन बगावत करने को आतुर हो जाता है , उस व्यक्ति के विरुद्ध। रिश्तों में समर्पण की जगह नियंत्रण का भाव मुझे अक्सर उन रिश्तों से विमुख होने पर मजबूर कर देता है। और मेरी तो आदत भी बहुत बुरी है, मैं कभी नहीं बताती कि मुझे ये नियंत्रण पसंद नहीं आ रहा , मैं बस खुद को अलग कर लेती हूँ धीरे-धीरे। और जबतक सामने वाले को अहसास होता है, हमारे बीच बात करने को कुछ भी बाकी नहीं रह जाता !!
बिना कहे भी, कई बातें, कई बार, कह दी जाती हैं ! लेकिन सामने वाले को वो बात समझ भी तो आनी चाहिए।
चलो विदा दो अब, पढ़ने भी जाना है। जल्दी आऊँगी। ख्याल रखना।
pabandiyaa hamesha bagawat karwati hai, chahe man pr ho, yaa manav pr..!!!
ReplyDeleteBht achha tha... 🙏🏼💛
ReplyDeleteBadaa faaltu chiz hai ye mann. Jeene hi nhi deta h Sasur ke naati 😫