प्रिये संग्रहिका ,
काफी दिन हुए ना मिले ? हाँ थोड़ी व्यस्तता थी। इसे बहानेबाजी कहना चाहो तो कह सकती हो। शायद कभी कभी ना लिखना बेहतर होता है। मात्र ३ दिवस पश्चात नववर्ष दस्तक देने को है। पर इस बार कोई ऊर्जा का संचार नहीं है। ये वर्ष मानो नीरसता में गुज़रा हो। ना तो किसी के आने की ख़ुशी ना तो किसी के जाने का गम। जिसे कहते नहीं हैं बैरागी भाव , बस वही समाहित हुआ सा जान पड़ा इस वर्ष। हाँ, भावनाओं में काफी उतार चढ़ाव देखने को मिला। कई ऐसी भावनाये भी महसूस की जो पहले कभी नहीं की थी। अच्छा, क्या लगता है, मनुष्य कितनी भावनाओ को जनता है ? और कितनो को अब तक नाम दे पाया है ? क्यूँकि भावनायें तो अनगिनत हैं , और भावनाओं के नाम सीमित। अच्छा चलो विषय से भटकूँगी नहीं वापस आती हूँ नीरसता और नववर्ष पर।
हाँ तो नववर्ष आने को है। आने को क्या है, लगभग आ ही गया है समझो। बस ३ ही दिन तो बाकी है। लोग नए वर्ष के लिए resolutions बनाते हैं। मैं भी बनाती हूँ। ये सोचकर कि क्या पता दिमाग नए वर्ष को देख कर ही थोड़ा उत्साहित हो और कुछ काम करने लग जाये। लेकिन मैं जो resolutions बनाती हूँ वो नया साल प्रारम्भ होने से कुछ हफ्ते पहले ही शुरू कर देती हूँ। ताकि नया वर्ष आते आते दिमाग और शरीर उसमे ढल जाये और अपना मोमेंटम न खोये। लेकिन इस बार तो सोचा ही नहीं है कुछ। और नया साल सिर पर खड़ा है। चलो इस वर्ष के resolutions का ही आँकलन किया जाये कि कितना पूरा हो पाया है।
इस वर्ष के resolutions थे -
5 मिनट रोज किसी विषय पर शीशे के सामने खड़े होकर बोलने का प्रयास करना।
शुरुवात के २ महीने तो बाकायदा चला था है लेकिन फिर मार्च में प्रयागराज जाना हो गया तो व्यवस्था बिगड़ गयी क्योंकि वहाँ स्वास्थ्य स्थिर नहीं रह पाया। फिर वहाँ से वापस लौटने के बाद भी कुछ समय पुराने स्वास्थ्य की ओर लौटने में ही लग गया। उसके बाद तो होली और फिर हमारी मथुरा की फैमिली ट्रिप प्लान हो गयी। आधा अप्रैल तो इसी में बीता। फिर वापस गाड़ी को पटरी पर लाने के लिए हथकंडे आज़माने शुरू किये मैंने। कोशिश भरपूर की। लगा कि गाड़ी पटरी पर आ ही जाएगी। लेकिन कुछ हो नहीं पाया। और मैं विफल रही। और धीरे धीरे आदत भी जाती रही। तो जून आते आते ये वाला टास्क तो मद्धिम पड़ गया। लेकिन फिर अचानक तूल पकड़ा अगस्त महीने से बनारस की ट्रिप के बाद। और फिर चला अक्टूबर तक बीच में विभिन्न बाधाओं के साथ। फिर आ गया नवंबर सर्दी के सन्देश वाहक के साथ। और दिसंबर में तो बिलकुल ठप्प पड़ गया। फिर मैंने स्वयं भी प्रयास करने बंद कर दिए।
तो तुम्ही बताओ इस टास्क को अधूरा माना जाये या पूरा ? मेरी ओर से तो टास्क 50 % पूरा ही मानो। वैसे पूरा हो या अधूरा इसका ध्येय तो पूरा ही नहीं हुआ इस वर्ष। इस वर्ष एक भी मंच नहीं मिला। 25 दिसंबर आख़िरी मौका था। कार्यालय पर अटल जी की गोष्ठी का आयोजन होता था। इस वर्ष ना जाने वो भी क्यों नहीं हुआ। ये मौका भी गया हाथ से। स्टेज पर मेरे हाथ पाँव कांपने लगते हैं इसीलिए अभ्यास शुरू किया था। लेकिन जब मंच ही नहीं मिला तो कैसे ही पता किया जाये कि ये टास्क कितना सार्थक हो पाया। चलो अगले टास्क की ओर बढ़ते हैं।
एक कविता हर हफ्ते याद करनी है किसी भी कवि की ।
इस हिसाब से देखा जाये तो इस वर्ष मुझे 52 कवितायेँ याद हो जानी चाहिए थी। लेकिन मैंने याद की केवल 40 कवितायें। टास्क अधूरा ही रहा लेकिन करने में मजा खूब आया। कई लेखकों की जीवनियाँ पढ़ीं। बहुत कुछ सीखने को मिला।
ENGLISH VOCAB MAINTAINENCE.
ये तो जुलाई तक नॉन स्टॉप चला। एकदम स्मूथ। काफी अंग्रेजी सीख ली इस वर्ष। शब्दकोष में भी काफी इज़ाफ़ा हुआ। मुझे अंग्रेजी बोलने में पहले झिझक होती थी लेकिन अब गलत अंग्रेजी भी काफी आत्मविश्वास के साथ बोलती हूँ। व्याकरणिक सुधार भले पूरी तरह से ना हो पाया हो लेकिन बोलने में सुधार काफी हो गया है। इससे एक बात तो सीखने को मिली कि कोई भी नयी भाषा बोलने से ही बेहतर आ पाती है। जुलाई के बाद टास्क बंद पड़ गया बीच बीच में दुबारा कोशिश की शुरू करने की लेकिन वो फ्लो बन नहीं पाया। फिर भी मैं इस टास्क को पूरा ही मानूँगी क्योंकि इसका ध्येय काफी हद तक पूरा हो गया।
२ उपन्यास हर महीने (अंग्रेजी / हिंदी )
तो मतलब इस वर्ष कुल 24 किताबें पढ़ने का टार्गेट था। अब उपन्यास तो नहीं लेकिन किताबें कुल मिलाकर 15-16 के आसपास ही पढ़ पायी। इसके लिए समय निर्धारण नहीं था जिस वजह से पढ़ाई में भी काफी दिक्कतें हुईं क्योंकि एक बार कोई भी किताब शुरू कर दो तो फिर पूरा किये बिना छोड़ने की इच्छा नहीं होती। केवल एक ही किताब अधूरी छोड़ी है "कितने पाकिस्तान" जिसकी वजह मैं तुम्हें पहले बता चुकी हूँ। अच्छा रहा किताबों के साथ का अनुभव भी।
कम-से-कम 30 मिनट रोज़ वर्कआउट।
इस पर तो हँसने का मन करता है। हालांकि कक्षा 4 से ही मेरी समयसारिणी इसके बिना अधूरी ही रहती है। लेकिन फिर भी काफी अड़चने आती हैं इसमें। सबसे पहला तो पीरियड्स ही। 5 दिन सीधे चले जाते हैं इसमें। मतलब साल में 60 दिन यानी सीधे २ महीने का वर्कआउट लोप हो जाता है। ऐसा नहीं कि इसमें वर्कआउट कर नहीं सकते लेकिन हो नहीं पाता है मुझसे , अथाह पीड़ा और असुविधा के चलते। दूसरा कारण सुबह जल्दी उठने का है। कितनी भी जल्दी उठ जाओ लेकिन सुबह घर के कामों से ही फुर्सत नहीं मिल पाती। हाँ बहानेबाजी ज्यादा हो गयी जानती हूँ। इसीलिए मैंने भी तोड़ निकाल लिया इसका। सुबह उठने के बाद 10 मिनट फिर शाम को 10 मिनट और फिर रात में सोने से पहले 10 मिनट। समस्या हल। मात्र 10 मिनट का ही काम है तो आलस भी नहीं लगता। इससे कुछ खास फर्क तो पड़ा नहीं लेकिन फ़ायदा ये हुआ कि वजन अभी भी 50 से 55 के बीच में ही रहता है। जो ठीक ही है मेरे जितने कद वाले व्यक्ति के लिए।
काफी लम्बी लिस्ट है। इतने ही काफी हैं बाकी टार्गेट्स की स्थिति का अनुमान लगाने के लिए।
अब वो काम बताती हूँ जो अनएक्सपेक्टेड ही शुरू किये बिना किसी प्लानिंग के।
सबसे पहला तो इंकसंघ, काफी लोगों से मुलाकात हुई। बहुत कुछ सीखने को मिला। दूसरा मैंने गुजराती सीखने की कोशिश की जिसमे मेरी मदद मेरे कई गुजराती मित्रों ने की लेकिन मनमौजी बाबा का योगदान सर्वाधिक रहा। गुजराती के अलांवा भी बहुत कुछ सीखने को मिला इनसे और इनके लेखों से। अब तो इनके लेख पढ़ने की आदत हो गयी है। नहीं, नहीं आदत तो हल्का शब्द हो जायेगा। लत कहना ठीक होगा। तीसरा रेडियो अवध। यहाँ तो सच में ऑन फील्ड बहुत कुछ सीखने को मिला। और बहुत कुछ अभी बाकी भी है। एक नयी हैबिट और विकसित की है BLOGGING की। इसका श्रेय भी बाबा जी को ही जाता है। उन्ही की प्रेरणा से शुरुआत की इसकी। इस शब्द से कन्फूज़ मत हो तुमसे मिलकर बातें करने को ही हमारी प्रजाति वाले BLOGGING कहते हैं।
ये सब तो हो गयी व्यक्तित्व विकास की बातें। लेकिन पढ़ाई के मामले में ये साल बहुत ठीक नहीं रहा। बहुत सारे टार्गेट्स अधूरे छूट गए जो नहीं छूटने चाहिए थे। इसका बड़ा कारण है सोशल मीडिया का व्यसन। अगले साल सबसे बड़ा टार्गेट और चैलेंज इसी को लिमिट करना है। बाकी तो सब राम जी पर है।
ये साल तो ठीक रहा। कई नए लोगों से मुलाकात हुयी। कई पुराने छूट भी गए। जो छूटे उनमें कुछ के छूटने की वजहें मालूम चली कुछ गुप्त ही रह गए। कुछ के जाने का थोड़ा दुःख तो है ही लेकिन नए लोगों ने उसकी जगह पूर्ति कर दी है। कुछ नए लोगों से निरंतर बात करने की आदत बनी कुछ पुराने लोगों से छूट गयी। अगले वर्ष के अंत तक न जाने कौन साथ रहेगा और कौन छूट जायेगा। लेकिन इससे ये सीखने को जरूर मिला कि कोई भी सदा रहने के लिए हमारे जीवन में नहीं आता। सबके अपने-अपने रास्ते हैं जहाँ दो रास्ते एक दूसरे से होकर गुज़रतें हैं वहीं हम भी टकरा जाते हैं। और फिर से वही अपने-अपने रास्ते।
देखो अगले साल का, अगला साल आने से पहले कुछ शुरू हो पाता है या नहीं ! बहुत बातें हो गयी आज। बहुत ANALYSIS कर लिए। चलो अब विदा दो। जल्दी आऊँगी। ख़याल रखना अपना।