सबसे पहले तो कान पकड़ कर माफ़ी चाहूँगी ! हाँ , पता है महीनों बीत गए आये। पर क्या करूँ ? अब समय की बड़ी किल्लत है ! हाँ , बहुत व्यस्त रहने लगी हूँ। तुमसे बात करने के लिए केवल समय नहीं इत्मीनान भी साथ लाना पड़ता है और मैं समय ले भी आऊँ तो अब इत्मीनान बिल्कुल गायब है जीवन से !
ना जाने कितनी बार तो तुमसे मिलने आने की बड़ी उत्कंठा हुई लेकिन फिरसे वही समय की कमी के चलते कभी आ नहीं पायी। ना जाने कितनी भावनाये , कितने विचार शब्दों का रूप धारण करने से पहले ही वाष्पित हो गए। इसी तरह तो कवितायेँ भी वाष्पित होती जा रही हैं। वो मुझतक आती तो हैं लेकिन मेरा इंतज़ार करते करते उनकी जीवन रेखा समाप्त हो जाती है।
पता है ? आज भी वहीँ बैठी हूँ जहाँ बैठकर तुमसे अक्सर बातें किया करती थी। हाँ घर आयी हुई हूँ। और अब तो हमेशा घर आने पर ही लगता है तुमसे बात होना नसीब हो पाता है और घर ! घर आना तो अब बहुत कम ही हो पाता है। दिवाली के बाद सीधे होली में ही आने वाली थी। लेकिन पिछले ही सप्ताह मम्मी पापा का एक्सीडेंट हो गया था , तबसे मन लगा हुआ था इधर ही। तभी आने का सोच रही थी , लेकिन पिता जी ने आने से मना कर दिया था , लेकिन मैं भी ठहरी थोड़ी हठी एक और प्रयास करके देख ही लिया और इस बार पिता जी मान गए ! और उसी के परिणाम स्वरुप मैं तुम्हारे समक्ष।
थकी हुई हूँ थोड़ी नींद भी आ रही है। फिरसे बातचीत लग रहा है अधूरी ही रह जाएगी। ख़ैर ज्यादा बात खींचने का कोई मतलब भी नहीं है बस तुमको देखने आयी थी।
जाते जाते एक आखिरी बात... बहुत भयंकर नींद आ रही !!!
छोडो फिर कभी।
ख्याल रखना अपना शुभरात्रि।
