दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समायी ? काहे को दुनिया बनायी....!! ?
प्रिये संग्रहिका ,
क्या लगता है ? दुनिया किसने बनाई होगी ? और क्या सोच कर बनाई होगी ?
ये सवाल जीवन में कभी न कभी हर इंसान के मन में आता ही आता है। लेकिन फिर हम सब इस सवाल को नज़रअंदाज़ करके वापस अपने रोज़मर्रा के तिकड़म में व्यस्त हो जाते हैं। ये सवाल हर किसी के मन में क्यों आता है ये भी एक गंभीर प्रश्न है ! शायद इसीलिए क्योंकि कोई तो ऐसी अदृश्य शक्ति है जो चाहती है कि हम इस प्रश्न के विषय में चिंतन करें। पर वो शक्ति ऐसा क्यों चाहती है ?
शाक्य कुल में जन्मे राजा शुद्धोधन और महामाया के पुत्र सिद्धार्थ के मन में भी एक बार ये प्रश्न आया था। पर उन्होंने हमारी तरह इस प्रश्न को नज़रअंदाज़ नहीं किया बल्कि उसपर चिंतन करके उसका अनुशरण किया। जो कि होना तय ही था। बताती हूँ कैसे....
महामाया जब गर्भवती थीं तब एक रात उन्हें स्वप्न आता है कि कोई सुन्दर, सफ़ेद हाथी अपनी सूंड़ में कमल का पुष्प लिए उनके शरीर के आरपार हो जाता है जिससे वो भयभीत होकर उठ जाती हैं। फिर ये स्वप्न अपने पति शुद्दोधन को बताती हैं तो सुबह विद्वानों को बुलवाया जाता है इस स्वप्न का अर्थ जानने के लिए। विद्वानों ने इस स्वप्न के विषय में दो बातें बतायीं। पहला तो ये कि आपको पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी और दूसरा ये कि या तो आपका पुत्र चक्रवर्ती सम्राट बनेगा या तो महान सन्यासी।
जब जन्म देने का समय निकट आया तो महामाया अपने मायके जा रही थीं क्योकि उस समय में स्त्रियां अपनी पहली संतान को जन्म देने अपने मायके जाया करती थीं। मायके जाते वक्त उन्हें रास्ते में ही प्रसव पीड़ा शुरू हो गयी। उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया। लेकिन प्रसव पीड़ा सहन ना कर पाने के कारण उनकी मृत्यु हो गयी।
राजा शुद्दोधन इस बात से खुश थे कि उनके घर पुत्र जन्मा है लेकिन उससे भी अधिक दुखी थे क्योंकि उनकी पत्नी महामाया का देहवासन हो गया था। अब राजा के समक्ष अपने पुत्र को पालने के लिए माँ सा स्नेह दे पाने वाली स्त्री की आवस्यकता थी। और माँ सा स्नेह तो मौसी ही दे सकती है तो उन्होंने महामाया की बहन प्रजापति गौतमी से विवाह कर लिया। सिद्धार्थ का लालन पोषण उनकी मौसी गौतमी ही करती हैं। इस समस्या के समाधान के बाद राजा के समक्ष एक और चिंता आ खड़ी हुई। विद्वानों द्वारा की गयी भविष्यवाणी में से एक तो सही सिद्ध हुआ था उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। तो राजा को अब चिंता सताने लगी कि उनका पुत्र चक्रवर्ती साम्राट बने न बने लेकिन सन्यासी नहीं बनना चाहिए। क्योंकि एक राजा के लिए ये बड़ी ही शर्म की बात होती थी की उसका पुत्र सन्यासी हो जाये। तो उन्होंने सिद्धार्थ को बचपन से ही भोग विलास में लिप्त कर दिया क्योकि सन्यासी कोई व्यक्ति तभी बनता है जब उसका सामना दुःख और पीड़ा से होता है।
१६ वर्ष की आयु में सिद्धार्थ का विवाह एक सुन्दर राजकुमारी यशोधरा के साथ कर दिया गया जिससे उनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई। अपनी पत्नी और पुत्र के साथ उनका जीवन बहुत खुशाहाली से व्यतीत हो रहा था। लेकिन सिद्धार्थ इस बात से दुखी थे कि उनको महल से बाहर जाने की अनुमति नहीं थी।
एक दिन अपने सारथि चन्ना के साथ चुपके से वो महल के बाहर जाने में सफल हो जाते हैं। जब वो नगर का भ्रमण कर रहे थे तो उन्हें एक बूढ़ा व्यक्ति दिखाई दिया। उन्होंने चन्ना से पूछा कि ये क्या है तो उसने बताया कि " ये बुढ़ापा है एक दिन हम सब बूढ़े हो जायेंगे "। सिद्धार्थ ये देखकर व्याकुल हो जाते हैं कि क्या मैं भी एक दिन ऐसा हो जाऊंगा ! इतना कमज़ोर कि मुझसे एक सड़क तक पार नहीं किया जायेगा !! सिद्धार्थ चन्ना को आगे चलने के लिए कहते हैं। फिर वो आगे चलते हैं तो उन्हें एक बीमार व्यक्ति दिखता है। वो फिर पूछते हैं चन्ना से कि इसे क्या हुआ है तो वो बताता है कि ये रोगी है इसे रोग हो गया है इसीलिए इसे औरों से अलग रखा गया है। वो फिर और आगे चलते हैं तो उन्हें एक काफिला दिखता है जो किसी व्यक्ति को अपने कन्धों पर लादे लिए जा रहा था। सिद्धार्थ फिर पूछते हैं कि इसे ऐसे क्यों ले जाया जा रहा है ? चन्ना बताता है कि " राजकुमार , ये एक मृतक व्यक्ति है इसीलिए सब इसे ऐसे ले जा रहे हैं। मृत्यु अटल है एक दिन हम सब की मृत्यु होगी। " सिद्धार्थ विचलित हो जाते हैं इन दृश्यों को देखकर और चन्ना को रथ वापस महल की ओर ले चलने को कहते हैं। लौटते वक्त रास्ते में उन्हें एक सन्यासी दिखता है जिसके मुख पर शांति थी। वो फिर पूछते हैं कि इसके मुख पर इतनी शांति और संतुष्टि का भाव कैसे है ? नगर में तो जितनों को देखा उनमे से कोई बहुत खुश था तो कोई कोई बहुत दुखी। चन्ना उत्तर देता है कि ये व्यक्ति सन्यासी है , दुःख सुख सभी से ऊपर उठ चुका है। सन्यासी सभी परिस्थितियों में सामान रहते हैं। सिद्धार्थ के मन में जो व्याकुलता पनपी थी उसे ऐसी ही शांति की आवश्यकता थी।
महल वापस लौट कर सिद्धार्थ सोचते हैं कि यदि एक दिन सब कुछ समाप्त ही हो जाना है तो ये जीवन किसलिए है फिर। यदि अंत में हम सबको मर ही जाना है तो हम जन्म क्यों लेते हैं ? इस जीवन का उद्देश्य क्या है आखिर !? इन्ही प्रश्नो का उत्तर खोजने के लिए एक रात वो चुपके से सब कुछ छोड़कर निकल जाते हैं अपने सारथि चन्ना के साथ। राज्य की सीमा पर पहुँचने पर सिद्धार्थ अपने राजसी वस्त्र उतार कर सन्यासी वस्त्र धारण कर लेते हैं और अपने केश भी स्वयं काट देते हैं। फिर वहां से अकेले वन में निकल जाते हैं सत्य की खोज में।
वन में उनकी भेंट अलारा कलामा से होती है जो उनके पहले गुरु बनते हैं। उनसे सिद्धार्थ ध्यान लगाना सीखते हैं। सिद्धार्थ बचपन से ही सूक्ष्म पर्यवेक्षक ( MINUTE OBSERVER ) थे जिसके चलते बहुत ही कम समय में उन्होंने अपने गुरु से बहुत सारी चीजे सीख ली थीं। उसके बाद वहां से वो प्रस्थान कर जाते हैं। और इस बार मिलते हैं उद्रक रामपुत्र से जो उनको हठयोग की दीक्षा देते हैं और कहते हैं सत्य की खोज करनी है तो अपने शरीर को तपाना होगा, सभी वस्त्र त्याग कर हर मौसम की मार झेलनी होगी। भोजन जितना कम हो सके उतना ग्रहण करना होगा और धीरे धीरे भोजन का त्याग भी कर देना होगा।
अपने गुरु उद्रक की बात मान कर सिद्धार्थ हठ योग शुरू करते हैं। उन्होंने वस्त्र और भोजन त्याग दिया और ध्यान लगाने लगे। धीरे धीरे वो इतने कमजोर हो गए की नदी में खड़े होना भी मुश्किल था उनके लिए। सारा शरीर गल गया था। प्रतीत होता था जैसे किसी हड्डी पर एक परत मांस चढ़ा दी गयी हो। एक दिन वो नदी में स्नान कर रहे थे तो लहरों के साथ बहने लगे। जैसे तैसे करके किनारे पर पहुंचे एकदम अधमरी हालत में। उसी वक्त वहां से सुजाता नाम की एक लड़की नदी से पानी भरने के लिए जा रही होती है तो उन्हें देख कर डर जाती है। उसे लगता है या तो ये कोई प्रेत हैं या कोई देवता क्योंकि शरीर से भले वो दुर्बल और कुरूप दिख रहे थे लेकिन उनके मस्तक पर एक तेज था। वो दौड़ी दौड़ी जाती है और अपने घर में बनाई हुई खीर , उन्हें भोग लगाने के लिए , उठा लती है। इस उम्मीद से कि उनसे आशीर्वाद मिल जायेगा।
खीर खाने के बाद सिद्धार्थ थोड़ा पुष्ट होते हैं फिर उन्हें ये बात समझ आती है कि ना तो अत्यंत कठिन तप से काम बनेगा और ना ही अत्यंत आसान। यहाँ से वो फैसला करते हैं मध्यम मार्ग पर चलने का।
और फिर माध्यम मार्ग पर चलकर उन्हें ज्ञान की प्राप्ति होती है।
तो वो सत्य क्या था जिसका उन्हें ज्ञान हुआ था ? वो सत्य यही था कि मनुष्य का जीवन दुखों से भरा है। और दुःख का कारण हैं इच्छाएँ। दुःख खत्म किया जा सकता है। अपनी सभी इच्छाओं से ऊपर उठकर।
या तो भौतिक और शारीरिक इच्छाओं को पूरा कर लो ताकि दुबारा जन्म लेने का कोई कारण ही ना रह जाये या तो इच्छाओं को तुच्छ मानकर उससे ऊपर उठ जाओ।
देखो टॉपिक क्या था और मैं लिखते लिखते कहाँ पहुंच गयी, पूरी कहानी ही सुना दी !!
जो मैं तुमको बताने वाली थी वो बात दरअसल ये थी कि सभी इच्छाओ से ऊपर उठ जाने की चाह भी तो एक प्रकार की इच्छा ही है। सत्य तो ये है कि मनुष्य कभी इच्छाओ से ऊपर नहीं उठ सकता। बस उन्हें नियंत्रित कर सकता है।
तुम बताओ, तुम्हारी ऐसी कौन सी इच्छा है जो तुम्हें पूरी करनी है ? अच्छा इच्छा है कि इच्छाएँ हैं ?