प्रिये संग्रहिका ,
उम्मीद करती हूँ मेरे पिछले ब्लॉग्स की आधी-अधूरी बातों से अब तक तो उभर चुकी होगी तुम। वादा करती हूँ आज बिना बात पूरी किये नहीं जाऊँगी। अच्छा ये बताओ, मैं हर बार आती हूँ कुछ भी उटपटांग बताना शुरू कर देती हूँ और तुम इतने ध्यान से सुनती हो ये जानते हुए भी कि मेरा कोई भरोसा नहीं है कि मैं बात पूरी करुँगी या नहीं , या फिर उन बातों का कोई सार्थक अर्थ होगा या नहीं। तुम फिर भी मुझे सुनती हो , क्यों !? कहीं तुमको मुझसे प्यार तो नहीं !!? बोलो ! बोलो !
अच्छा चलो शर्माना छोड़ो , बेवजह नहीं छेड़ूँगी।
पता है प्रेम क्या होता है ? मेरा हर बार, हर बात तुम्हे आकर बताना, और तुम्हारा मुझे हर बार धीरज धर के ध्यान से सुनना। नहीं ये प्रेम नहीं ! लेकिन आजकल की परिभाषा के हिसाब से देखा जाये, तो हाँ ! यही प्यार है।
मुझसे मत पूछना प्रेम के विषय में। क्योंकि मैं इस विषय को लेकर अजीब कश्मकश में हूँ। मेरा प्रेम में विश्वास तो है पर मुझे यही नहीं पता कि प्रेम की परिभाषा क्या है ! हाँ , मानती हूँ कि मैंने प्रेम पर कई कवितायें लिखी हैं पर वो सब अंधी समझ लो। बस अंधी मारी है, आँख बंद करके उन्ही परिभाषाओं को दायरा बनाकर जिसे दुनिया प्रेम कहती है।
जहाँ स्वार्थ हो वो प्रेम नहीं हो सकता है , फ़िलहाल तो इतना ही दायरा बना पायी हूँ। और इस दायरे के हिसाब से देखा जाये तो मेरा तुमको सब कुछ बताना स्वार्थ है क्योंकि मुझे अपने दिल का बोझ हल्का करना होता है। और तुम मुझे सुनती हो इसमें भी तुम्हारा स्वार्थ निहित है क्योंकि तुम्हें तुम्हारी एकाकी से बाहर निकलने में सहायता करने मैं आ जाती हूँ। तो चिंता मत करो। हम दोनों एक दूसरे के प्रेम में नहीं हैं। कम से कम मेरी परिभाषा के अनुसार देखा जाये तो नहीं ही हैं।
तुम्हें क्या लगता है ? मुझे तुमको सब कुछ बता कर अच्छा लगता है, तुम्हें मुझको सुनकर अच्छा लगता है। तो क्या अच्छा लगने को प्रेम की श्रेणी में रखा जा सकता है ? बात करने में अच्छा लगना , समय साथ बिताने में अच्छा लगना , एक दूसरे के बारे में सोचना अच्छा लगना !?
पता है मुझे क्या लगता है ? प्रेम में हमें कभी सामने वाले से कोई अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए। प्रेम स्वंत्रता का भाव है। जहाँ प्रेम स्वंत्रत होता है किसी अन्य की भावनाओं पर आश्रित होने से। अगर तुम्हें कोई अच्छा लगता है तो बदले में ये अपेक्षा रखने का भाव छोड़ना होगा कि उसको भी तुम अच्छी लगो। अगर तुम उसे अपना समय दे रही हो तो वो इसलिए क्योकि तुम उसे पसंद करती हो। अब तुम्हारे मन में अगर ये भाव है कि सामने वाला भी तुमको अपना समय दे तो फिर ये तो ज्यादती होगी उसके प्रति। इसे प्रेम तो नहीं कहा जायेगा। प्रेम का अर्थ ये थोड़े ही होता है कि वो परस्पर (MUTUAL) ही हो।
अच्छा मुझे एक बात और नहीं समझ आती कि लोग ऐसा क्यों कहते हैं कि प्रेम में पीड़ा होती है। यहाँ भी मेरा मत औरों से बहुत भिन्न है। अगर किसी भाव में पीड़ा है तो उसे मैं प्रेम तो बिल्कुल नहीं मानती। पता नहीं बाकी जो कहना चाहते हैं वो मैं समझ नहीं पा रही हूँ या सच में मेरी परिभाषा अलग है।
पता है अभी अभी एक मच्छर ने बड़े प्यार से मेरे गालों को चूमना चाहा, लगभग सफल भी हो गया था लेकिन फिर मैंने चट्ट से एक थप्पड़ लगा दिया उसको। बेचारा मर गया ! क्या इसी पीड़ा को लोग प्रेम कहते हैं !?
क्या मतलब प्रेम में हम किसी भी हद्द तक जाएँ और सामने वाले को असहज महसूस कराएँ , और बदले में यदि वो प्रतिक्रिया दे तो हम उसे पीड़ा का नाम दे दें !? हद्द है मतलब !
प्रेम पुष्टि (VALIDATION ) नहीं मांगता। प्रेम को पुष्टि की आवस्यकता नहीं होती।
लेकिन १ मिनट , प्रेम समाज से ऊपर तो नहीं जा सकता ना। हर वो चीज जो समाज में रहने वाला व्यक्ति करता है उसपर सामाजिक नियम लागू होते हैं। और प्रेम भी उनमे से एक है !
आज घर वापस लौट रही थी तो रास्ते में एक दंपत्ति (विवाहित) हाथ पकड़ कर चलते हुए दिखे। कसम उपरवाले की वो दृश्य देखकर मन भावविभोर हो उठा। लगा जैसे यही प्रेम की पराकाष्ठा है। दो जीवन संगियों का एक साथ चलना। मानो प्रकृति की सारी सृजनात्मक शक्तियां उस दंपत्ति के साथ चल रही हों। देवता स्वर्ग से उतर कर धरती पर प्रकृति के विभिन्न रूपों को धारण कर इस अद्वितीय दृश्य का साक्षी होने आ गए हों। पूरा वातावरण मग्न हो गया हो केवल उनके हाथों को पकड़ कर चलने के भावों को देखकर। वो भाव जिनमे मिश्रित है संकल्प, एक दूसरे के सुख दुःख में साथ चलने का , एक दूसरे को सहयोग करने का, हर परिस्थिति में हाथ थामे रहने का ! वाकई कितना मनोहर दृश्य था !! फिर क्यों ना देवता भी उसपर मग्न हों !?
अच्छा एक और बात बताऊं ? तुमको तो पता ही है समाज में रहते रहते मुझपर भी उन नियमों का थोड़ा प्रभाव तो पड़ ही गया है। मैं न थोड़ी रूढ़िवादी हूँ। तो ये जो अभी ऊपर हाथ पकड़ कर चलने के विषय में इतने अच्छे अच्छे कसीदे पढ़े हैं वहीं "विवाहित" हटा दो फिर मेरी प्रतिक्रिया देखो !!
फिर मैं कुछ ऐसा लिखती...
दो लोगों को हाथ पकड़कर चलने का जो दृश्य मैंने देखा कसम से मेरी आँखे शर्मशार हो गयीं। प्रकृति मानो प्रलय लाने पर तुल गयी हो ! देवता अपने अस्त्र शश्त्र लेकर धरती का विनाश करने आ रहे हों , उन्हें भी इतनी शर्मिंदगी हुई इस दृश्य को देखकर ! पूरा वातारण दूषित हो गया उन दोनों के हाथ पकड़ कर चलने से !!
तो BOSS प्रेम VALIDATION तो माँगता है ! समाज और सामाजिक नियमों का !! समझी !? विवाहित होना प्रेम में होना होता है ! जबकि दो प्रेम करने वाले कभी विवाह नहीं करते , या शायद करने नहीं पाते ! दो लोगों का विवाहित होकर सड़क पर सरेआम हाथ पकड़ कर चलना प्रेम है लेकिन दो प्रेमियों को उसी भाव के साथ हाथ पकड़ कर चलना समाज को दूषित करता है !!!
मैं भी दूषित हो गयी हूँ, मेरे विचार भी, इस समाज में रहते रहते !!!!!!
तो अब बताओ इतने सारे नियम और परिभाषाओं को मद्दे नज़र रखते हुए कि तुम्हें मुझसे प्रेम है या नहीं !?
कहीं भी कोई भी परिभाषा में अगर हम दोनों के ACTIONS फिट बैठते हों तो बताना कि....
" कहीं तुमको मुझसे प्रेम तो नहीं !? "
चलो चलती हूँ अब ज्यादा परेशान नहीं करुँगी तुमको। ख्याल रखना अपना !