प्रिये संग्रहिका ,
रात के बज रहे हैं डेढ़। और मेरी आँखों में नींद का दूर-दूर तक नामों निशान नहीं है। मुझे पता है नींद आ तो जाएगी लेकिन तब जब उठने का समय हो जायेगा। और ना जाने क्यों अब कम अवधि की नींद मेरे लिए पर्याप्त नहीं पड़ रही है। आजकल तो सिर भी बड़ा दुखता है अधूरी नींद के कारण। ये सब समस्याएँ पहले नहीं हुआ करती थीं। बढ़ती उम्र के साथ एक-एक रोग बढ़ता जा रहा है। बड़े दिन हो गए तुमसे मिले हुए भी, है ना। परीक्षाओं में व्यस्त थी। असल में परीक्षा की तयारी में व्यस्त थी। पर उसका भी कोई लाभ लग नहीं रहा कि मिलने वाला है। फिर भी परमेश्वर पर भरोसा है। जो उनकी मर्जी होगी वो सिरोधार्य होगी, थोड़ी बहुत नौटंकी के बाद।
परीक्षा के चलते इंस्टाग्राम भी बंद कर रखा था, स्टूडियो से भी छुट्टी ले रखी थी। किसी भी चर्चा में सम्मिलित होने से भी खुद को रोके रखा। बातचीत तो धीरे धीरे लोगों से ना के बराबर कर दी थी। न जाने कितने लोगों के कॉल्स मिस किये। अच्छा बाकियों का तो ठीक है , लेकिन बुआ के ४-५ कॉल्स मिस कर दिए। और बुआ को मनाना दाँतों चने चबाने के बराबर है। पेपर के बाद तो बड़ी जद्दो जेहत करनी पड़ी उन्हें मनाने के लिए। बड़े दिनों बाद सोशल मीडिया एकाउंट्स को वापस एक्टिवटे किया। जब बंद किया था तब काफी लोगों के मेसेजेस आये थे कि क्यों बंद कर दिया। किसी को कुछ बताया तो किसी को कुछ। हर किसी को क्या बताना की परीक्षा की तयारी में लगे हुए हैं। जबतक सोशल मीडिया नहीं था वास्तव में बड़ा सुकून था। ना पोस्ट करने की चिंता। ना लाइक्स और व्यूज देखने का झंझट। शुरुवाती दिनों में तो बड़ा कष्ट झेलना पड़ा। अब लत लगी थी छुड़ाने में समय तो लगता ही। पर आसान है। बहुत आसान है सोशल मीडिया छोड़ देना। पहले भी कई बार डीएक्टिवेट किये हैं अकाउंट २-३ महीनों तक के लिए। इस बार तो फिर भी १ ही महीना था। लेकिन बड़े दिनों बाद इतना लम्बा ब्रेक था। इस बार खास ये था कि बहुत सारी चीजों का realization हुआ।
पेपर की तयारी के दिनों में बहुत सारे विचार मन में स्फुरित हो रहे थे। नए नए आइडियाज आ रहे थे। नयी कविताओं का स्फुरण हो रहा था। लेकिन मैंने सबको अंकुरित होने से रोके रखा। सोचा परीक्षा के बाद सब देख लुंगी। लेकिन जबसे परीक्षा ख़तम हुई है , ना तो कोई विचार दिमाग में पनप रहा है और न ही इंस्टाग्राम पर मेरा मन लग रहा है। ऐसा लग रहा है मानों माया नगरी है। कुछ नहीं रखा है इन सबमें। समय बर्बादी का साधन मात्र है और कुछ नहीं। पेपर के बाद जिस relaxation की अपेक्षा की थी वो भी नहीं मिली। अभी भी कोई तो बोझ है जो दिल और दिमाग पर बना हुआ है।
सोच रही हूँ एक बार फिर से डीएक्टिवेट कर दूँ कुछ महीनों के लिए। लेकिन फिर वही है कि ये भावनाओं में उठाया कदम होगा, जो ठीक तो बिल्कुल नहीं साबित होगा। पर किया क्या जाये , ना तो कुछ काम कर रही हूँ ना ही ढंग से चिल कर पा रही हूँ। समझ नहीं आ रहा क्या करूँ !!? नवरात चल रहा है, सुबह जल्दी उठना होता है। पर इंसान जल्दी तो तब उठे ना जब जल्दी सो जाये।
पता है आजकल युवाओं की सबसे बड़ी कमजोरी क्या है ? रियल वर्ल्ड में ना रहना। सोशल मीडिया की चका चौंध ने उन्हें अंधा कर दिया है और वास्तविकता से कोसो दूर। सोशल मीडिया स्थाई करियर के रूप में नहीं चुना जा सकता है। पर ये बात कौन समझाये आजकल के युवाओं को। सोशल मीडिया के साथ साथ एक और व्यसन पाल रखा है रिलेशनशिप्स का। हाँ ये व्यसन ही तो है। मैं किसी ऐसे व्यक्ति को जानती हूँ जो कई सालों से रिलेशनशिप में था लेकिन अब किसी कारणवश उनका विग्रह हो गया है। निसंदेह ये जीवन का एक अंश है। लेकिन व्यक्ति ये बात भूल जाता है कि ये अंश मात्र है पूरा जीवन नहीं। यदि आप अपने जीवन के अलग अलग अंशों को स्वतंत्र रूप से नहीं चला सकते तो आपको ऐसे अंश अपने जीवन से निकाल देने चाहिए जिससे बाकि अंश भी प्रभावित हों। रेलशनशिप निरा समय की बर्बादी है और कुछ नहीं। मात्र बर्बादी। कोई मूव ऑन कर जाता है , तो कोई पागल हो जाता है , फिर अपने दोस्तों को भी पागल बनाता अपने दुखड़े सुना सुनाकर। दोस्त उसके साथ मिलकर अगले वाले की बुराई करे तो वो राजी ख़ुशी रहे , और कहीं गलती से सत्य से सामना करा दे तो कहा जाता है " ज्यादा ज्ञान मत दो ! " इस वाक्य पर तो मन करता है खींच तमाचा जड़ दें कनपटी के नीचे " मतलब जब तक तुम्हारा दुखड़ा सुन सुनकर पकें तबतक ठीक जो कहीं काम की बात बता दें तो ज्ञान मत दो !! मतलब हद्द है भाई हद्द है।
साला यहाँ नेता लोग उल जुलूल मुद्दों पर अटके हुए हैं , युवा प्यार में पागल हैं , उनसे तन्हाई नहीं झेली जा रही है। कुछ मेरी तरह कन्फ्यूज्ड हैं। कुछ को पता ही नहीं करना क्या है। और कुछ घिब्ली इमेज क्रिएट करने में लगे पड़े हैं। ना जाने क्या होगा इस देश का ! कुछ चंद युवाओं के दम पर चल रहा है ये देश। आने वाले सालों में इनकी संख्या में भी गिरावट देखने को मिलेगी। बिगड़े और भटके हुए नौजवान क्या परवरिश करेंगे बच्चों की !
मैं लोगों से ज्यादा बातें नहीं पूछ पाती , मुझे लगता है ये उनके जीवन में अनचाही बेदखली जैसा मालूम होगा। लेकिन चुल्ल तो अंदर से मची ही रहती है ये जानने की कि असल में पूरी बात है क्या। लेकिन जबतक सामने वाला स्वयं न बता दे अपनी सीमाओं का उलंघन करना भी उचित नहीं है। मुझे नहीं पता उन दोनों के बीच झगड़ा किस बात का है। पर इतना पता है कि एक इंसान इसमें अपनी दुर्गति करने पर तुला हुआ है। और ये समय उसके लिए बड़ा ही कीमती है फिर भी। रिश्ते-नाते, प्यार-दोस्ती ख़ुशी देने के लिए और दुःख बांटने के लिए होते हैं , ट्रामा देने के लिए नहीं !!
चलो अब शुभरात्रि , थोड़ी नींद तो आँखों में भर ही गयी है। देखो अब सुबह कितनी गलियों के बाद नींद खुले। ख्याल रखना अपना।