प्रिये संग्रहिका,
कैसी हो ? मेरे बिना चैन की साँस तो खूब आती होगी। मेरी ऊल-जुलूल बातों से छुट्टी जो मिल जाती है। बहुत दिनों से आना चाह रही थी तुमसे मिलने, पर बिल्कुल समय नहीं मिल पा रहा था। या यूँ कह लो कि जिस इत्मीनान से तुमसे बात करने की इच्छा होती है वो इत्मीनान नहीं मिल पा रहा था। आज भी जबरदस्ती बैठी हूँ कुछ जरूरी कामों को छोड़कर। अभी-अभी सेमि फाइनल्स में इंडिया जीत गयी। ऑस्ट्रेलिया के साथ मैच था। ज़ाहिर सी बात है भारत के जीतने पर मुझे ख़ुशी होगी क्यूंकि मैं स्वयं एक भारतीय हूँ। इनसाइट्स देखती हूँ तो इंडिया की जीत के मोमेंट्स के साथ - साथ ऑस्ट्रेलिया के हार के मोमेंट्स भी दिखाते हैं। और हमेशा की तरह मेरी सहानुभूति हारे हुए पक्ष में चली जाती है। एक तो मिडिल क्लास फैमिली में एक चीज बड़ी बेकार है- शेयर्ड कमरों वाला सिस्टम। अब भले ही मैं अपने कमरे में एक कोने में बेड पर पड़े-पड़े तुमसे बात कर रही हूँ पर दूसरे कोने में बैठे मेरे दोनों भैया लोग बैकैती किये बहाये हैं। अब उस चर्चा में मैं भी एक आध बार शामिल हो जा रही हूँ , जिसके चलते आधे घंटे से खाली यही इतना लिख पायी हूँ !! मुझे तो डर इस बात का है कि तुमसे जो बात करने आयी हूँ वही न भूल जाऊँ।
तो बिना देर किये शुरू कर देती हूँ वरना तो पक्का है कि भूल जाऊँगी। बात ऐसी है कि रेडियो में ट्रेनी के तौर पर रिकार्डेड शो ही कर रही थी अभी तक। लेकिन कुछ दिनों पहले ही लाइव शो करने का मौका मिला। आज पाँचवा दिन था। २ बजे दिन में रोज शो करना होता है। शो है फरमाइशी गानों का। आज सिस्टम पर बैठते ही सिस्टम हैंग कर गया। फटाक से रीस्टार्ट किया। और लिंक लेने के साथ ही शुरुवात की। यही अगर पहले दिन हुआ होता तो मैं भी हैंग कर जाती सिस्टम के साथ-साथ !
पहले दिन का अनुभव बताऊँ तो हालत पतली थी एकदम। असल में जिस आरजे का ये शो है वो थोड़े दिनों के लिए छुट्टी पर गए हुए हैं। उन्ही की जगह रिप्लेसमेंट के तौर पर मैं प्रैक्टिस के लिए कार्यरत हूँ। जिस दिन वो छुट्टी पर जा रहे थे उसी के ठीक एक दिन पहले बैठकर मैंने उनको काम करते देखा था। उससे पहले मैं ऑन एयर में नहीं बैठी थी। उसी एक दिन में जितना ज्ञान अर्जित करना था और जितनी मेरी सीखने की क्षमता थी मैंने उतनी कोशिश की चीजों को सीखने की। और दूसरे दिन से उतर गयी युद्ध में। पहले दिन तो दिल इतना धक् धक् कर रहा था ऐसा लगता था मानों निकल कर बाहर ही आ जायेगा। उंगलिया इतनी काँप रही थीं कि कीबोर्ड पर चलाना मुश्किल हो रहा था। बोलने का काम तो मैं एक बार को फिर भी हैंडल कर सकती थी। पर कुछ टेक्निकल कामों की मुझे अभी जानकारी नहीं थी जैसे कौन सी फाइल कहाँ सेव है। बम्पर या प्रोमो कब चलना है। इन्ही सब चीजों की जानकारी। तो मेरे साथ एक और ट्रेनी आरजे हेल्प करने के लिए रोज ही रहते हैं। उस दिन भी थे। उस दिन मैं बहुत पैनिक कर रही थी। बोलने में भी मैंने कई गलतियां की। पहले व्यक्ति का नाम पूछना होता है , फिर पता और फिर गाने की फरमाइश पूछनी होती है। मैंने लाइव शो करने से पहले बहुत सारी चीजे सोच रखी थी जो मुझे अवॉयड करनी थी। उसमे से एक गलती थी कभी भी फीडर ऑन नहीं छोड़ना है गलती से भी। मतलब ये कि हम जिस फीडर को ऊपर करके बाते करते हैं, जिससे हमारी आवाज़ रेडियो पर प्रसारित होती है वो फीडर बात करने के बाद हमेशा डाउन कर देना होता है। लेकिन गलती से मुझसे एक बार बीच में फीडर ऑन ही रह गया। और इधर मैं और मेरे साथ दूसरे सहयोगी इस विषय पर चर्चा कर रहे थे कि अगला ऐड कौन सा डालना है ! और ये सब रेडियो पर प्रसारित हो रहा था। सर ठीक सामने दूसरे वाले कम्पार्टमेंट में बैठे थे। बीच में शीशे के ज़रिये डिविज़न है तो सर ने वहीं से इशारे से बुलाया। फिर बताया की फीडर अप ही छूट गया है और आपको लोगो की वॉइस रेडियो पर प्रसारित हो रही है। गजब प्रकार की ग्लानि का भाव मन में उत्पन्न हुआ था उस समय तो।
रेडियो पर पहले दिन तो मैंने सारा ही काम उल्टा किया। पहले गानों की फरमाइश पूछी , फिर पूछा कहाँ से सुन रहे हैं और अंत में नाम पूछा। मतलब पूरा क्रम ही उलट दिया। जबकि होना ये चाहिए कि पहले नाम पूछा जाना चाहिए ,फिर कहाँ से सुन रहे हैं वो, और अंत में ये पूछना कि क्या सुनना चाहते हैं। पहला शो करने के बाद हमारे हेड ने हमें फीडबैक दिया। पहले दिन की हुयी गलतियों को भी बताया और ये भी बताया कि उसको कैसे सुधारा जा सकता है। मुझे तो डर था इन गलतियों पर मुझे फटकार ना पड़े। हालांकि सर काफी सप्पोर्टिव हैं इस मामले में। डाँटने के बजाए सुझाव देने में ज्यादा यकीन रखते हैं। दूसरे दिन आत्मा जरा शांत हुयी। तो धीर थोड़ा और बंधा। कुछ परिचित लोगों को कॉल करने के लिए बता रखा था। उन्होंने किया भी था। मजा आया बात करके। थोड़ी हिचक हर दिन के साथ जाती रही। गलतियां तो रोज ही कर रही थी मैं साथ ही कुछ ना कुछ सीख भी रही थी। कल या परसों में छुट्टी पर गए हुए आरजे आएंगे और अपना कार्यभार संभालेंगे। तो बस एक या दो दिन की कसक और है। फिर इस काम से छुट्टी। धीरे धीरे मजा आने लगा था। आज अचानक पता नहीं क्या हुआ सिस्टम ही हैंग हो गया पूरा। वापस रीस्टार्ट करना पड़ा। फिर माउस की ही स्क्रीन में अटक गयी। न इधर हटाए हटे ना उधर हटे। फिर से रीस्टार्ट किया गया। ऐप पर प्रसारित होने वाला सिस्टम तो आज बार बार हैंग कर जा रहा था। वायरस का कुछ लोचा है। सिस्टम की मरम्मत के लिए किसी को बुला रखा है पर वो पिछले दो दिनों से हाजिरी ही नहीं दे पा रहे हैं।
रही बात मेरे एक्सपीरियंस की, तो अच्छा रहा, बहुत अच्छा रहा। थोड़े ही दिनों में इतनी प्रोग्रेस देखना, वाकई, किसी काम में, बड़े दिन बाद नसीब हुआ है, अच्छा लग रहा है। कहानियों की सीरीज वाला स्लॉट खली था तो उसको आज़माने का सोचा मैंने उसी क्रम में हर हफ्ते २ दिन कहानियों का स्लॉट रेडी करना है। इस हफ्ते की एक कहानी तो हो चुकी है। आज एक और कहानी की रिकॉर्डिंग करनी थी लेकिन एक तो सिस्टम वाली समस्या थी दूसरा मेरा गला ख़राब। असल में हुआ ये कि दो बजे दिन में धूप में स्टूडियो आना फिर स्टूडियो में एसी में बैठ कर काम करना। बीच में, लगे हाथ पानी पीना, पूरे शो के दौरान थोड़ा महंगा पड़ गया। और जो भयंकर खरास हो रखी है। खांसी अलग से परेशान कर रही है। खरास की बहुत अधिक समस्या मुझे कभी जान नहीं पड़ी होने के बाद भी। मुझे कभी ये समस्या बड़ी नहीं लगती थी, लेकिन जबसे बोलने का काम शुरू किया है रेडियो पर तबसे ये समस्या बड़ी लगने लग गयी है।
पूरे दो दिन चली ये वार्ता तुम्हारा साथ। आधा हिस्सा कल लिखा था आधा आज। बाबा जी ने बहुत ज़ोर ना दिया हुआ तो शायद ही लिखती। क्योंकि समय मिलता नहीं निकलना पड़ता है। और मैं रोज ये कहकर टाल देती थी कि आज समय नहीं है फिर कभी। टालते टालते इतना समय हो गया कि जो भावनाएं उस वक्त व्यक्त हो पाती वो आज व्यक्त ही नहीं हो पायीं। वापस पढूं तो शायद मैं भी ना समझ पाऊँ कि लिखा क्या है !! फिर भी बस लिख दिया है।
जब से सोशल मीडिया छोड़ा बड़ा सुकून है। २४ घंटों की खबर तो अभी भी कुछ खास लग नहीं रही है पर कुछ तो है जो बढ़ गया है। शायद वास्तविक जीवन से नजदीकी। पता है कई बार हम इतने काम लेकर एक साथ चलना चाहते हैं जितना किसी के लिए एक साथ लेकर चल पाना संभव नहीं है, फिर जब हम सभी कार्यों को पूरा करने में असफल हो जाते हैं तो खुद की क्षमताओं पर संदेह करने लग जाते हैं।
चलो विदा दो अब। ख्याल रखना।