प्रिये संग्रहिका,
जल्दी आऊँगी बोलकर कुछ ज्यादा ही जल्दी आ गयी ना ? चलो आ ही गयी हूँ तो थोड़ी गपसप ही कर ली जाये। आज संक्राति है। मकर संक्रांति। आज दिन और रात दोनों ही सामान अवधि के होंगे। लेकिन भागती दौड़ती इस दुनिया में किसे फर्क पड़ता है कि दिन और रात कितने बड़े और कितने छोटे हो रहे हैं। काम तो सबको उतने ही घंटे करने होते हैं। ना करें तो इंसान भागती भीड़ से पीछे छूट जाये। आज मंगलवार भी है। और मंगलवार के दिन खिचड़ी नहीं बनाई जाती, ऐसी मान्यता है। पर संक्राति हो और खिचड़ी ना बने ये तो संभव ही नहीं है ना। तो अंत में इस दुविधा का यही निवारण निकाला गया कि संक्रांति है तो खिचड़ी बनेगी ही। मुझे आज से पहले नहीं मालूम था कि मंगलवार को खिचड़ी बनाना वर्जित है। आज ही पता चला। लेकिन ये तो अभी भी नहीं पता चल पाया कि क्यों नहीं बनाई जाती। पूछने पर पता नहीं चल पाया क्योंकि उन्हें भी नहीं पता। पर मान्यताओं और परम्पराओं की कुछ तो बात है। वरना सूर्यवंशम वाले हीरा ठाकुर "प्रतिष्ठा, परंपरा और अनुशासन " की बात इतनी सख्ती से क्यों करते !?
महाकुम्भ का भव्य आयोजन हुआ है। 144 वर्षों बाद महाकुम्भ का योग बना है। १२ पूर्ण कुम्भ के पश्चात महाकुम्भ का आयोजन होता है। जिसे देखो वही कुम्भ में डुबकी लगाने को दौड़ा जाना चाहता है। मैं भी !! किसी से पूछो क्यों जाना है ? तो कहते हैं " मोक्ष पावे खातिर ! " मुझे नहीं पता उनके लिए मोक्ष क्या है ! लेकिन क्या संसार में रहकर ही मुक्ति नहीं पायी जा सकती है ? पूछने पर पता चलता है कि " सांसारिक मोह माया से मुक्ति ही मोक्ष है !! और जीवन मरण के चक्र से छुटकारा पा लेना मुक्ति !! "
पर मेरे लिए मोक्ष क्या है !?
भवनाओं से मुक्ति ही मेरे लिए मोक्ष है। जैसे गंगा में डुबकी लगाने से पाप धुल जाते हैं वैसे ही इन भावनाओं से छुटकारा दिला दें गंगा मैया , फिर तो क्या ही पूछना है।
इंसान किसी भी लिंग, जाति, धर्म या राष्ट्र का क्यों ना हो, भवनाएँ सबके अंदर होती हैं। जो जीना कठिन बना देती हैं लेकिन जीवन को आसान। छोड़ो मैं पागल हूँ ! खुद की बातों की स्पष्टता में ही उलझ गयी !!
चलो कुम्भ पर वापस आती हूँ। करोड़ों लोग एक ही स्थान पर इक्कट्ठा हो रहे हैं। मुझे भीड़ में थोड़ी समस्या होती है। फिर भी भीड़ के साथ भागना चाहती हूँ और भाग भी रही हूँ। इतने लोगों के पाप धोकर ये नदियां कितनी दूषित हो जाएँगी ना? हाँ, नदियाँ। प्रयाग में संगम है ना। त्रिवेणी संगम। तीन नदियों का संगम - गंगा, यमुना और सरस्वती का। वैसे पाप से दूषित हो या ना हों लेकिन मानवीय प्रवृति के कारण जरूर दूषित हो जाएँगी। श्रद्धा , आस्था की बात एक तरफ है। लेकिन ये आदत से मजबूर मानव, कैसे अपनी हरकतों से बाज आये भला !? इस मेले के समापन के बाद ढेर सारा कचरा इकट्ठा हो जायेगा। और ऐसा कचरा जो recyclable नहीं होगा। क्या किया जा सकता है। मंथन में अमृत के साथ विष भी तो निकलता ही है।
मन स्थिर नहीं है आज और ना ही ये नेटवर्क। फिर आऊँगी कभी।
विदा दो। शुभरात्रि !