प्रिये संग्रहिका ,
पता है नए वर्ष में नई विधा लिखने का सोचा था। पर तुमसे कुछ ज्यादा ही बँध गयी हूँ। या यूँ कह लो कि अब अपने कम्फर्ट जोन से बाहर नहीं निकलना चाहती हूँ। जनवरी निकलने को है, आधी तो निकल ही चुकी है। आधी कब निकल जाएगी खबर भी नहीं होगी। बड़ी प्रसिद्द कहावत थी बच्चों के बीच बचपन में " जनवरी जान न पड़ी फ़रवरी फुर्र से उड़ी " और फिर तो मार्च सिर पर खड़ा। ये कहावत परीक्षाओं के लिए प्रचलित थी जो मार्च में हुआ करती थीं। अब भी होती हैं परीक्षाएँ। परीक्षाएँ पीछा नहीं छोड़तीं। जीवन में भी कई परीक्षाएँ देनी पड़ती हैं। चिंता मत करो वापस फिलोसॉफी नहीं झाड़ूंगी। वो तो बस फ्लो-फ्लो में एक लाइन निकल गयी।
क्या लगता है ? आदतें अच्छी होती हैं या बुरी ? मानती हूँ, बुरी चीजों की आदतें बुरी होती हैं लेकिन क्या अच्छी आदतें भी बुरी होती हैं ? ये सब छोड़ो ,पहले तो ये बताओ कि किन आदतों को अच्छा और किन आदतों को बुरा कहूँ ? ये तो सबसे बड़ा प्रश्न है ! जैसे देखो, चीज़ों को organized, सही ढंग से रखना अच्छी आदत है। लेकिन व्यवस्थित चीज़ों की आदत लग जाना थोड़ा बुरा है। रुको बताती हूँ, कैसे ? मुझे अपनी स्टडी टेबल व्यवस्थित ही पसंद है। अब मुझे जब भी उस पर पढ़ना होता है तो सबसे पहले उसको ढंग से लगाती हूँ, फिर पढ़ने बैठती हूँ, और उतने में मेरा मोमेंटम loose हो जाता है। ऐसा एक बार नहीं हर बार होता है। क्योंकि बिखरा मेज देखकर मुझे उलझन होती है। उलझन इसलिए होती है क्योंकि आदत हो चुकी है साफ़-सुथरे, व्यवस्थित टेबल को देखने की। अब व्यवस्थित चीज़ें बुरी तो नहीं होतीं लेकिन उनकी आदत लग जाना कभी-कभी नुकसानदेय होता है।
बहुत दिन हुआ राजनीति पर चर्चा किये, है ना !? ऐसा नहीं है कि आजकल देख नहीं रही हूँ या अपडेटेड नहीं हूँ। आदत तो उसकी भी लग चुकी है। चाय तो पीती नहीं हूँ। लेकिन सुबह नाश्ते के नाम पर गरम पानी पीने जब भी बैठती हूँ सबसे पहला काम वही करती हूँ। यूट्यूब खोलकर देश दुनिया की खबरे लेने की। जैसे भारत बांग्लादेश के बीच में फेंसिंग को लेकर जो सीमा विवाद चल रहा है, और अमेरिका की कथनी और करनी के बीच का अंतर, AI CHIPS को लेकर जिसमें उसने भारत को द्वितीय टियर के देशों में रखा है। भारतीय रुपयों की गिरती कीमत, RBI की कोशिशों के बाद भी। और भारतीय पासपोर्ट का गिरता इंडेक्स। गिरता इंडेक्स क्या ! गिरती रैंकिंग, पावरफुल पससपोर्ट की इंडेक्स में। और एक तो सबसे जरूरी, जरूरी नहीं इंट्रेस्टिंग। इजराइल और फिलिस्तीन (हमास) के बीच युद्ध विराम। पर्मानेन्ट CEASE-FIRE !
बहुत कुछ चल रहा है दुनिया में। जरा सी पलक झपकते ही बहुत सारी चीजे घटित हो जाती हैं। बस एक तुम ही हो, जिसको जहाँ और जैसा छोड़कर जाओ वैसी ही मिलती हो। यहाँ तो इंसानों से दिनों बाद मिलो तो भावनाएँ , हालात , जज़्बात सब बदल जाते हैं।
हाल ही में एक केस सुना, सुना क्या देखा। एक कुत्ता और एक शेर एक टॉयलेट में बंद हो गए। कैसे ? पता नहीं ! लेकिन आश्चर्य की बात ये है कि ना तो कुत्ते ने शेर पर भौंका और न ही शेर ने उसको खाने की ज़हमत उठाई। बाद में वन बिभाग के विशेषज्ञों से पता चला कि जानवरों को अपनी आज़ादी बड़ी प्यारी होती है। अगर उनको लगने लगे कि उनकी अज़ादी छीनी जा रही है तो खाना पीना सब त्याग देते हैं। सामान्य सी बात है आज़ादी सबको प्रिय होती है जानवर हों या इंसान। बंधन किसे ही पसंद है !? जबतक वो बंधन मनचाहा ना हो। शायद अंग्रेजों का बंधन भारतीयों के लिए मनचाहा नहीं था। मुझे भारत की आज़ादी की लड़ाई में भी बड़ी विडंबनायें नज़र आती हैं। हमें आज़ादी किससे चाहिए होती है ? गुलामी से। लेकिन हम गुलाम किसके थे ? अंग्रेज़ों के ? या मुग़लों के ? या सुल्तानों के ? किसके ? वो तो कहो अंग्रेजों के बाद कोई नहीं आया वरना भारत की आज़ादी की लड़ाई में अंग्रेज़ भी भारतीयों के साथ होते। और शायद अपने लिए भारत की भूमि से एक अलग टुकड़ा अपने हिस्से का मांग रहे होते। सही ही है। जो भारत में एक बार आता है वो सदा के लिए भारत का हो जाता है। फिर अंग्रेज क्यों नहीं ? तुमको क्या लगता है ?
बातें तो होती रहेंगी। रोज़ ही होती रहेंगी। लेकिन रोज़-रोज़ बातें करने से बातों का मर्म ख़त्म हो जाता है। चलो फिर विदा दो अब। ख्याल रखना। जल्दी आऊँगी। शुभरात्रि !