प्रिये संग्रहिका ,
पता है हम अच्छाई की अपेक्षा किससे करते हैं ? उससे जो स्वयं को अच्छा कहते हैं। रुको एक बात बात बताती हूँ। एकदम सच्ची घटना पर आधारित। कल्पना का लेश मात्र भी मसाला नहीं छिड़कूँगी। तो बात कुछ ऐसी है कि मैं क्लास 10th में थी। 10th माने बोर्ड्स , माने टीचर्स की गुडबुक्स में रहने वाला साल और बहसबाजी तो बिलकुल नहीं। वो क्या है ना इंटरनल्स के कुछ नंबर टीचर्स के हाथ में ही रहते हैं। और ये नंबर आपकी रैंक ऊपर नीचे करने में बड़ा रोल निभाते हैं। मैं बहुत शांत तो नहीं पर हाँ थोड़ी शालीन हुआ करती थी। लेकिन एक बार एक टीचर से मेरी कहा सुनी, बहसबाजी हो गयी किसी बात पर। और वो भी क्लास टीचर से ! बाद में दोस्तों ने समझाया कि " क्या भसड़ मचा दी बहन तुमने ! बोर्ड्स है ये ! थोड़ा तो संयम का परिचय दिया होता ! " तब मुझे लगा कि " इ तो भारी मिस्टेक हो गया हमसे !" थोड़ा सा गिल्ट भी था क्योंकि कभी टीचर्स से ऐसे पेश नहीं आती थी मैं। और थोड़ी सी अपनी गर्ज भी क्योंकि नंबर का सवाल था बाबू भैया !! अब मैं गयी अपने क्लास टीचर के पास मासूम शकल के साथ माफ़ी मांगने। तो थोड़ी सी डाँट पड़ी। उसका उतना बुरा नहीं लगा जितना बुरा उनकी निराशा से लगा। उन्होंने कहा " बेटा कोई मुंहफट बच्चा होता तो इतना बुरा नहीं लगता लेकिन तुमसे ये अपेक्षा नहीं थी ! " भाईसाब सच में बड़ा बुरा लगा था ! उसी दिन ये बात भी समझ आयी थी जो सबसे पहले ऊपर बताई।
तुम्हे लग रहा होगा मैं ये बात क्यों बता रही हूँ ? देखो असल में बात ऐसी है कि इस धरा पर, उसपर भी हमारे देश में कुछ ऐसे बुद्धिजीवी हैं जो खुद को लिबरल मानते हैं। और अक्सर शांति, उन्नति और भाईचारे की बात करते हैं। मैं भी करती हूँ पर मेरा सिद्धांत सभी पर लागू होता है किसी एक व्यक्ति विशेष या संप्रदाय विशेष पर नहीं। कल ही एक न्यूज़ एंकर को सुन रही थी। पिछली बार तुमको संभल वाला मसला बताया था ना उसी पर। तो श्रीमान का कहना था कि " मंदिर का सर्वे क्यों कराया जाना चाहिए ? जब कानून इस बात की अनुमति ही नहीं देता है कि किसी भी पूजास्थल का पुन:स्थापन हो। जो जैसा है उसको वैसा रहने देना चाहिए " ठीक , यहाँ तक की बात पर मैं सहमत हूँ। नहीं बनाया जाना चाहिए। फिर महाशय आगे कहते हैं " जो चीज किसी के पूर्वजों ने किसी के साथ की, वो चीज हम आज दुबारा उनके वंशजों के साथ नहीं दोहरा सकते ! " बस यहीं मुझे लगा कि भईसाब कितने दोगले लोगों से दुनिया भरी पड़ी है। कुछ महीने पहले आरक्षण के मुद्द्दे पर भी उसी एंकर को सुन रही थी। तो उनका कहना था " जिनके साथ अत्याचार हुआ है, जिनको दबाया गया है उनको अब विशेषाधिकार मिलना चाहिए। " अरे भई यही बात तो मंदिर की मांग कर रहे लोग भी कह रहे हैं कि " हमारे साथ अत्याचार हुआ था, हमारी मंदिरें तोड़ी गयीं थी आततायियों द्वारा और हमें तो कोई विशेषाधिकार नहीं चाहिए हमें तो बस अपने पूजास्थल पर दुबारा पूजा करने की अनुमति चाहिए। " लेकिन इन सो कॉल्ड सूडो लिबरल्स से ये भी नहीं देखा जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने सर्वे पर रोक लगा दी है ये कहते हुए कि इससे सौहार्द बिगड़ेगा। चलो मान लिया बिगड़ेगा। नहीं होना चाहिए सर्वे, नहीं बननी चाहिए दुबारा मंदिरें। लेकिन यही बात आरक्षण पर भी तो लागू होती है ना ! क्या वहां एक वर्ग को मुख्यधारा में लाने के लिए दूसरे वर्ग का शोषण जायज़ है !? क्या सवर्ण गरीब और पिछड़ा नहीं है। ये बात आज विश्वविदित है कि जाति केवल पैसों की है। जिसके पास रुपया वो ऊँची जाति वाला जिसके पास नहीं है वो नीची जाति वाला। समाज के बनाये इस नए नियम की आलोचना कोई नहीं करता। लेकिन वो व्यवस्था जो ब्राह्मणो द्वारा कभी बनाई ही नहीं गयी उसको NCERT की पुस्तकें चीख चीख कर कहतीं हैं कि ब्राह्मणों द्वारा शुरू की गयी व्यवस्था थी। यहाँ सौहार्द नहीं बिगड़ता है। यहाँ एक वर्ग का दूसरे वर्ग के प्रति द्वेष उत्पन्न नहीं होता। लेकिन सिख गुरुओं का मुग़लों के साथ संघर्ष NCERT की पुस्तकों में इसीलिए शामिल नहीं किया गया क्योंकि एक वर्ग विशेष के प्रति लोगों के मन में द्वेष की भावना का निर्माण होगा !! कैसे हज़ारों मंदिरें और मूर्तियां जिहाद के नाम पर ध्वस्त कर दी गयीं ये बात नहीं बतायी जानी चाहिए। कैसे लाखो महिलाओं के बलात्कार हुए ,कैसे उन्हें SEX SLAVE बना कर रखा गया इस बात का ज़िक्र भी नहीं होना चाहिए। कैसे बच्चों को कौड़ियों के भाव बाज़ारों में बेच दिया गया ,नहीं पढ़ाया जाना चाहिए। क्यों ? क्योंकि सौहार्द बिगड़ेगा, द्वेष फैलेगा !!
तुम्हें क्या लगता है, ये दोगलापन है या नहीं ? हम अपनी परिभाषायें अपनी अपनी सहूलियत अनुसार बना लेते हैं। जो चीज़ें कभी मेरे लिए गलत हुआ करती थीं आज वही चीज सही हो गयी है क्योंकि मैंने वही काम करना शुरु कर दिया है अब। मैं भी दोगली हूँ। पर इतनी नहीं कि सही-गलत, न्याय-अन्याय सब का फर्क ही भूल जाऊँ !
इतिहास खुद को दोहराये इससे पहले हमें उससे सीख लेकर आगे लिखा जाने वाला इतिहास बदल देना चाहिए !!
अनुमति दो अब। फिर आऊँगी। ख्याल रखना अपना।