प्रिये संग्रहिका ,
बहुत मन है आज किसी विषय पर तुमसे चर्चा करने का , पर बिना किसी निर्धारित विषय के चर्चा की भी जाये तो कैसे और किसपर !? चलो फिर भी शुरू करती हूँ बात, आज अचानक फिर से सामने आयी एक समस्या का। समस्या क्या ही,,,,,,,उस समस्या की अनुभूति का।
ये आखिरी वर्ष है स्नातक का, और पहले ही सेमेस्टर से ये तय होता आया है मेरे और मेरे मित्रों के बीच कि अगले सेमेस्टर में लापरवाही नहीं करेंगे। समय से पढ़ना शुरू करेंगे ताकि परीक्षा की तैयारी अच्छे से हो जाये। और [ LAST MOMENT ] आखिरी समय में [ PANIC ] हड़बड़ाहट न महसूस हो। लेकिन ये केवल चर्चाओं में ही रहा कभी इसे अपनी दैनिक चर्या में आत्मसात ही नहीं कर पाए। आज फिर से वही चर्चा हो रही थी लापरवाही ना करने की अगले सेमेस्टर में , लेकिन फिर याद आया अब तो आखिरी साल है।
हम कई बार टालते-टालते समस्याओं को बहुत बड़ा बना देते हैं। टालने की आदत बहुत बुरी होती है। वो अपने आप में बहुत सारी बुरी आदतों को समेटे हुए है।
कई बार टालते-टालते हम इतना टाल जाते हैं कि समस्या बहुत बड़ी हो जाती है और फिर वह हमारे लिए बाधा उत्पन्न करती है। तुम्हें तो पता ही है नकारने में, मैं कितनी बुरी हूँ। अरे अब यहाँ काम चोरी वाली बात मत लाना। मैं काम को नकारने की बात नहीं कर रही हूँ । नकारना तब, जब कोई हमारे दायरे में घुसने का प्रयास कर रहा हो या तब, जब कोई हमारी सीमा को भंग करना चाहता हो। इस मामले में बहुत बुरी हूँ।
हमें अपनी सीमाओं का सम्मान करना आना चाहिए क्योंकि जब तक हम अपनी सीमाओं का सम्मान नहीं करेंगे तब तक हर दूसरा व्यक्ति हमारी सीमाओं को लाँघता रहेगा और हमारी शांति को भंग करता रहेगा ।
पिछली बार जब मिली थी तो मित्रता के विषय में कुछ ज्यादा ही विषैले विचार निकले थे, शायद परिस्थितियों के कारण !
> सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात यह कि कभी अपने पर किसी को, वह कोई भी हो.....मित्र, संबंधी, परिवार या साथी, पूर्ण आधिपत्य न करने दें।
> कोई आपके बनाये दायरे को लाँघकर, उसमें घुसकर उथल-पुथल मचाने का प्रयास करे, तो उसको वहीं रोक दें । और कड़ाई से रोकें। बिना किसी झिझक के। पहली बार में ही। यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो सामने वाले व्यक्ति को आश्रय मिल जाता है हर बार, बार-बार आपकी सीमाओं में घुसने का।
> यदि आप चाहते हैं कि कोई ऐसी बात है जो केवल आप तक सीमित हो तो आप उसे अपने सच्चे से सच्चे मित्र को भी ना बताएँ। क्योंकि आपको नहीं पता कि परिस्थितियाँ कब बिगड़े और कब वही मित्र शत्रु में बदल जाए और फिर आपके गहरे से गहरे राज़ सबके समक्ष खुली किताब बन जाएँ ।
> किसी संबंध में आपने कितने भी वर्ष क्यों न दिए हों यदि वह संबंध अब आपके विकास में रोड़े डाल रहा हो या आप उसमें सहज ना महसूस कर रहे हों तो इतना जिगरा ज़रूर रखें कि आप उस संबंध को उसी क्षण तोड़ दें, बिना झिझक के।
> कौन आपका मित्र है, कौन नहीं, ये परखने की शक्ति तो शायद हम सब में होती है । लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि कोई हमारा मित्र होता है, अच्छा भी होता है। लेकिन एक समय के बाद वह मित्र आपके लिए हानिकारक हो जाता है। तो इस बात को स्वीकार करने की शक्ति रखें और समझ भी। जरूरी नहीं है कि एक समय में जो आपका परम मित्र रहा हो, वो हमेशा ही आपका परम मित्र हो ।