पता है कई बार हम जितना सोचते हैं चीजे उतनी बड़ी होती नहीं हैं। हमारा दिमाग चीजों को बड़ा बना देता है। मुझे पता है जब हम किसी परिस्थिति में फँसे होते हैं तो उसको तीसरे परिपेक्ष्य से देखना मुश्किल होता है।
बचपन में किताबों में एक अभ्यास दिया रहता था पुस्तकों में , चूहे को खाने तक पहुँचाओ। बड़ा मज़ा आता था करने में। कई बार पहेली बड़ी ही सरल होती थी तो कई बार मुश्किल। लेकिन मन कभी भी विचलित नहीं होता था उन पहेलियों को देख कर। बल्कि जितनी कठिन पहेली उतना ज्यादा दिमाग लगाना और उतना ही ज्यादा मजा होता था। हमने पहेलियाँ तो खूब सुलझायीं बचपन में, लेकिन इन पहेलियों में जीवन का बहुत बड़ा सार छुपा था, जो हम सीख नहीं पाए।
अगर इसी पहेली को हम अपने जीवन की कोई समस्या मान लें और चूहे की जगह स्वयं को रख कर देखें तो शायद हमें भोजन ( समस्या के निवारण ) तक पहुंचना कठिन जान पड़े। और जब कोई रास्ता बताने वाला ना हो तब तो और कठिन।
एक रास्ते पर कुछ दूर चले तो आगे रास्ता बंद। पहली व्याकुलता तो यहाँ मिलेगी कि एक तो इतनी दूर आये और रास्ता बंद उसपर ये भी कि वापस फिर लौटना पड़ेगा उतना ही। और उससे भी बड़ी समस्या कि जो रास्ता आगे चुनेंगे उसका क्या भरोसा कि वो आगे बंद नहीं होगा।
फिर भी हम वहाँ से वापस लौटते हैं ( ये होता है हमारा धीरज ) और अगले रास्ते की ओर आगे बढ़ते हैं ( ये होता है हमारा विश्वास ) और फिर उसी रस्ते पर बढ़ते चले जाते हैं ( ये होता है हमारा साहस ) ।
कितना सरल हो जाये अगर हम किसी भी समस्या को बचपन की तरह ही ऊपर से देखना जान जाएँ जैसे पहेलियों को देखा करते थे। तो कितनी सारी समस्यायों का हल बिना विचलित हुए ही निकल जाये।
कुछ लोग होते हैं जिनकी पास ऐसी दृष्टि होती है जिससे वो किसी भी समस्या को ऊपर से देख सकते हैं। लेकिन वो कुछ लोगों ने पहले ऐसी कई समस्या को देखा और झेला होता है जिससे उन्हें इतना अनुभव हो जाता है कि किसी भी समस्या को किस तरह देखना होता है। कुछ लोग कई समस्याएँ झेलने के बाद भी ऐसी दृष्टि नहीं रख पाते। वो परेशान रहते हैं हमेशा। व्याकुल रहते हैं और विचलित भी।
मेरा ऐसा मानना है कि ईश्वर वही है जो सभी समस्यायों को ऊपर से बैठकर देख रहा होता है। और जब कभी हम रास्ते में उलझ जाते हैं तब तो किसी न किसी के ज़रिये हमें सही मार्ग तक पंहुचा देता है।
जब कभी ऐसा लगे कि " मेरे द्वारा चुना गया मार्ग अवरुद्ध क्यों है!?" तो समझ जाना ईश्वर ने तुम्हारे लिए किसी बेहतर मार्ग की तलाश कर ली है।
तुम्हें कोई व्याकुलता हुई है कभी किसी समस्या को सुलझाते वक्त !?
चलो सोचकर बताना अगली बार आऊँगी तब। अब विदा दो।