प्रिये संग्रहिका ,
और बताओ कैसी हो ? मेरी दुवाओं से ठीक ही होगी। कोई पूछने वाली बात नहीं !
चलो आज एक कहानी सुनती हूँ...
एक लड़का था , बड़ा ही प्रतिभावान और तीव्र बुद्धि वाला था। नाम था याज्ञवलक्य ( सुना सुना लग रहा ? )। कोई भी बात झट से सीख जाता था। जब बड़ा हुआ ( बड़ा हुआ मतलब शिक्षा ग्रहण करने लायक हुआ ) तो उसके माता पिता ने उसे आश्रम भेज दिया। वहाँ बाकी बच्चों से उसकी अक्सर झड़प हो जाती थी क्योंकि उसकी प्रतिभा के आगे कोई टिक नहीं पाता था जिस कारण सभी उससे ईर्ष्या करते थे। उसने समय और उम्र से पहले ही बहुत ज्ञान अर्जित कर लिया था। तो कई बार अध्यापक जब पढ़ाते तो याज्ञवलक्य बीच में टोक देता कि नहीं गुरु जी ऐसा नहीं ऐसा होगा आप गलत पढ़ा रहे। जिस कारण बच्चों के साथ साथ कई अध्यापक भी उससे ईर्ष्या करने लगे।
एक दिन अध्यापकों ने उसको अपने पास बुलाया और कहा " बेटा याज्ञवलक्य, हमारे पास जितना ज्ञान था वो सब हमने तुम्हे दे दिया है और अब तुम्हारी शिक्षा पूर्ण हो गयी है तो हमारी गुरु दक्षिणा तो बनती है।" याज्ञवलक्य ने कहा " बिल्कुल बताइये गुरु जी क्या दक्षिणा चाहिए ? तो फिर अध्यापकों ने कहा " देखो बेटा तुमने समय और उम्र से पहले सारी शिक्षा ग्रहण कर ली है, जो कि गलत है ! " फिर याज्ञवलक्य ने कहा " गुरु जी अब जान बूझ के तो मैंने ऐसा किया नहीं , फिर भी अगर ये गलत है तो बताइये मुझे क्या करना होगा !? " अध्यापकों ने कहा " बेटा एक काम करो ये सारा ज्ञान RELEASE कर दो !! "
अब सारा ज्ञान RELEASE करने के लिए याज्ञवलक्य उल्टियाँ करना शुरू करता है। धीरे धीरे याज्ञवलक्यके ज्ञान की उल्टियाँ पूरे आश्रम में फैल जाती है। जिसे देख वहाँ उपस्थित सभी छात्र और शिक्षक उस ज्ञान को पाने के लिए लालायित हो जाते हैं। और फिर याज्ञवलक्य के ज्ञान की उल्टियों को चाटने लगते हैं। ( साउंड्स डिसगस्टिंग ना ?) पता था मुझे। मुझे भी पहली बार ये कहानी सुनकर ऐसा ही प्रतीत हुआ था।
याज्ञवलक्य सारा ज्ञान RELEASE करने के बाद दुखी हो जाता है। और ये सारी घटना ऊपर से देख रहे होते हैं सूर्य देव। वो याज्ञवलक्य को अपने पास बुलाते हैं और कहते हैं बीटा दुखी मत हो मैं तुमको ज्ञान दूंगा। याज्ञवलक्य के पास फिर से ढेर सारा ज्ञान हो जाता है। और पृथ्वी के धुरंधर ज्ञानियों में उसकी गिनती होने लग जाती है।
अच्छा बाद की बात ये है कि यही याज्ञवलक्य एक बार शाश्त्राथ करने गए होते हैं। जहाँ एक विदुषी महिला भी आयी होती है, जिसका नाम रहता है गार्गी ( नाम तो सुना ही होगा !) दोनों के बीच शाश्त्राथ होता है और गार्गी का पलड़ा भारी पड़ता है। ये देख कर याज्ञवलक्य को गुस्सा आ जाता है और वो भरी सभा में कहते हैं " गार्गी चुप हो जाओ वरना मैं तुम्हारा सिर फोड़ दूंगा !! "
सोचो याज्ञवलक्य प्रकांड ज्ञानियों में से एक होने के बावजूद गार्गी से हार जाते हैं या हार जाना कहना गलत होगा। कह सकते हैं कि सा थोड़ा सा चूक जाते हैं। तो गार्गी कितनी बड़ी विदुषी रही होंगी। वैसे ये कहानी वैदिक काल की है। मुझे आश्चर्य होता है इन विदुषियों का नाम देखकर क्योंकि हमें तो बचपन से ही वो इतिहास पढ़ाया गया है जहाँ भारत में स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार ही नहीं था। फिर गार्गी, मैत्री, सिकता, अपाला, घोषा, लोपामुद्रा जैसी तमाम विदुषियाँ कहाँ से जन्मी ? और वेदों की रचना में भी अपना योगदान दिया !
यहाँ तो बताया जाता है कि स्त्रियों का वेद अध्ययन निषेध था। लेकिन इतिहास तो कुछ और ही कहता है। यहाँ तो स्त्रियों ने स्वयं वेदों की रचना में अपना योगदान दिया है फिर उनका वेद अध्ययन निषिद्ध कैसे हो सकता है !?
ख़ैर बीते दौर में स्त्रियों की जो भी दशा रही हो लेकिन आज के दौर में तो बिल्कुल ठीक नहीं है। हाँ प्रयासों द्वारा थोड़ा बहुत सुधार लाने में सफलता तो मिली है लेकिन ये काफी नहीं है। उससे भी अधिक आजकल के पुरुषो को ये सीखने और स्वीकारने की आवश्यकता है कि स्त्रियां भी उनके बराबर की हो सकती हैं बौद्धिक स्तर से और कई बार उनसे आगे भी। ठीक उसी तरह जैसे याज्ञवलक्य ने गार्गी की विदुषिता को स्वीकारा था और नमन भी किया था।
कायदे से देखा जाये तो आज पुरुषों के विषय में थोड़ी अच्छी बातें लिखनी चाहिए थीं। अरे बताया नहीं मैंने तुमको आज पुरुष दिवस है। लेकिन देखो बेचारो के विषय में उल्टा फटकार ही है। वैसे ठीक ही है पुरुष अच्छे प्राणी होते हैं डाँट फटकार से और अच्छे हो जायेंगे।
तुम्हें क्या लगता है , स्त्रियों को बौद्धिक स्तर की समानता का अवसर और स्वीकृति मिलनी चाहिए या नहीं ?
चलो बाकी बातें बाद में। शुभरात्रि !!