प्रिये संग्रहिका ,
पता है LET GO करना कितना कठिन होता है ? LET GO करने का मतलब होता है जाने देना। जाने देना हर उस चीज को जिससे आप बहुत ज्यादा जुड़े हों , जो आपको बहुत प्रिये हो, जिससे आपको ख़ुशी मिलती हो और कभी कभी उसको भी जिसके बिना जीवन की कल्पना कर पाना भी संभव ना हो।
जिसको आप अपना हिस्सा मान चुके हों उसको जाने देना वाकई मुश्किल तो होता होगा ना !? तुमको क्या लगता है मैं कभी तुमको खुद से दूर कर पाऊँगी या नहीं !? सोच रही होगी आज अचानक ये बात मन में क्यों आ गयी, है ना ? तो दरअसल बात भी कुछ ऐसी ही अचानक में ही हुई है। पिछले ८-१० सालों में मेरे पिता जी को कभी भी मेरी डायरी यानि की तुमको पढ़ने का विचार मन में नहीं आया लेकिन आज अचानक उन्होंने बोला लाओ देखूं तो क्या लिखती हो!? और मैं उन्हें दिखा नहीं पायी। जबकि ऐसी कोई बहुत व्यक्तिगत बातें होती नहीं हैं उनमें फिर भी। शायद मैं उनसे अपने ऐसे विचार साझा करने में झिझक महसूस करती हूँ। पर क्यों !? पता नहीं ! बस तभी लगा कि जबतक मैं हूँ तबतक तो तुमको दूसरों की नज़रों से बचा कर रखना आसान है। पर जब मैं ना रही तो ! फिर तो कोई चिंता ही नहीं होनी चहिये ! लेकिन नहीं, मैं नहीं चाहती कि लोग मेरे बाद भी मेरे विषय में कोई धारणा बनाये। वैसे धारणाएँ भी क्या ही हो सकती हैं वही ना जो मैंने लिख रखा होगा। फिर समस्या क्या है !? ख़ैर बात तो ये भी ठीक ही है।
दिवाली की सफाई चल रही थी.....और दिवाली की सफाई मतलब वही NOTALGIA से सामना ! NOSTALGIA मतलब अतीत की गलियों में खो जाना। अतीत से इंसान इतना ज्यादा जुड़ा होता है कि अतीत में की गयी चीजे इंसान का पीछा कभी नहीं छोड़ती, अब वो चाहे अच्छी चीजे हों या बुरी। अतीत में की गयी कुछ अच्छी चीजे आज वरदान सिद्ध होती हैं वही कुछ बुरी चीजे आज भी श्राप बनकर हमारा पीछा करती हैं !
कभी-कभी तो अतीत में उठाये एक गलत कदम की सजा हमें जीवनभर मिलती है !!
अरे, वापस आती हूँ दिवाली की सफाई पर, मैं भी कहाँ खो गयी थी ! हाँ तो दिवाली की सफाई हो रही थी , फिर वही पुरानी चीजों को हटाने के रिवाज़। लेकिन हर बार की तरह मोहवश होकर छोटी छोटी चीजों से दिल लगा बैठने वाली मैं ! उन चीजों को हटा ही नहीं पाती हूँ। ऐसी ही एक पटरी वही स्पाइडर मैन वाली, जिसे शायद मैंने चौथी या पांचवी कक्षा में ख़रीदा था, वापस उससे सामना हुआ। अब उसका उपयोग नहीं करती हूँ , करुँगी भी नहीं मुझे पता है लेकिन फिर भी ना तो मुझसे कभी वो किसीको दिया गया ना ही हटाया गया।
इस बार तो उसको रखने और हटाने के बीच जो द्वन्द था वो अजब ही था। एक हाथ से तो उसको कूड़ेदान में डालती दूसरा हाथ अपने आप उसे बहार निकल देता। ऐसा लगभग ६ से ७ बार हुआ। बाकियों को तो ये दृश्य हास्यास्पद जान पड़ा पर मेरे लिए यह दुविधा की परिस्थिति थी। लेकिन रखने और हटाने के इस द्वन्द में वापस, रखे जाने के पक्ष की विजय हुई। काम मुझे वैसे भी उसका कुछ भी नहीं आने वाला फिर भी हटाने में इतनी तकलीफ और दुविधा जान पड़ती है मुझे। ये मोह नहीं तो और क्या है ?
ऐसी बहुत सारी चीजे आज भी संजो कर रखी हुईं हूँ , और सिवाय जगह घेरने के उन वस्तुओं का कोई और काम है भी नहीं। वाह रे मोह !! तुमको भी किसी चीज का मोह होता है क्या ? बताना कभी....
मुझे लगता है कि हमें चीजों को खुद से दूर करते रहना चाहिए ताकि मोह हमपर हावी ना हो। शायद लोग इसिलिए दान करने की परंपरा पर ज्यादा ज़ोर देते हैं ताकि मोह के जाल से पार पाया जा सके। मेरे लिए कठिन है, बहुत कठिन ! मुझे जितनी मुश्किल होती है चीजों से मोह भंग करने में उससे अधिक समस्या होती है लोगों से दूर होने में। हाय ये ATTACHMENT ISSUES !!
तुम कभी किसी के मोह में मत पड़ना। मोह बुरा है प्रेम से अधिक बुरा !!
ख्याल रखना अपना...जल्दी आऊँगी।