सब कुछ गड़बड़ चल रहा है। नहीं नहीं मेरे जीवन में नहीं ! वहाँ का तो रोज़ का ही है। संसार में सबकुछ गड़बड़ चल रहा है। और भारत में तो और भी ज्यादा गड़बड़ चल रही है।
चलो शुरू से शुरू करते हैं.....जब से भारत में पहली सभ्यता जन्मी तबसे, सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पन सभ्यता के नाम से जाने जानी वाली सभ्यता। २६०० ईशा पूर्व फली फूली ये सभ्यता दुनिया के प्राचीनतम और सर्वश्रेस्ठ सभ्यताओं में से एक थी। इस सभ्यता की विकसित प्रणाली आज की टेक्नोलॉजी वाले ज़माने को भी पीछे छोड़ देती है। लेकिन इतनी विकसित और सुन्दर सभ्यता अज्ञात कारणों से १३०० ईशा पूर्व विलुप्त हो जाती है। आश्चर्य की बात है ना। तमाम इतिहासकार इसके पीछे अपने अपने मत देते हैं। और लोग अपनी सहूलियत के अनुसार कोई भी एक वजह मान लेते हैं। लेकिन सबसे प्रख्यात और स्वीकृत कारण है (Aryan Invasion Theory) आर्य आक्रमण सिद्धांत। मैं नहीं मानती, मेरी सहूलियत में फिट नहीं बैठता। पर मुझे आश्चर्य जरूर होता है नियति की निर्दैयता पर।
चलो एक सभ्यता खत्म हुई तो दूसरी नयी सभ्यताओं ने जन्म लिया। लेकिन पुरानी सभ्यता की छाप नयी सभ्यता में भी नजर आयी। ये भी आश्चर्य की बात है। नयी सभ्यता का विकास हुआ। नए लोगो ने जन्म लिया नए समाज बने नए नियम भी। फिर भी कुछ नियम पुरानी सभ्यता से मेल खाते हुए। ये भी आश्चर्य ही है।
जब बहुत सभ्यताएँ जन्मी और विस्तार की नीतियां अपनायी उन्होंने तो आपस में टकराव भी हुआ। टकराव में कोई जीता कोई हारा। ऐसी ही विस्तारवादी नीति का शिकार भारत भी हुआ था 712 AD में मोहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में। भारत में इससे पहले भी कई आक्रमण हुए थे जिनमे ग्रीक के सिकंदर का आक्रमण सर्वप्रथम था। लेकिन भारत के कूटनीतिज्ञ चाणक्य की सूझ बूझ से उसको विफल कर दिया गया था। उसके बाद भी पोरस लपेटे में आ ही गया था। हालांकि बड़ी बहादुरी से सामना किया था उसने फिर भी नियति के आगे कौन ही टिक पाता है।
तो पहला इस्लामिक आक्रमण कासिम का था , अच्छी खासी भसड़ मचा कर गया था मात्रा 17 वर्ष का होने के बाद भी। उसके बाद तो इस्लामिक आक्रमण की लड़ियाँ सी लग गयी थीं। जिसे देखो भारत आना है। कोई पूछे प्रयोजन ? तो भैया सबके अलग अलग मत। लेकिन आक्रमण की सफलता में एक कारण स्पष्ट था, वो था, उस दौर में चाणक्य जैसे कूटनीतिज्ञ की कमी।
चलो और बाकी कारण जो भी रहा हो लेकिन भारत को इन आक्रमणों ने बहुत नुकसान पहुंचाया , धन सम्पदा ,पूजा स्थल, संस्कृति, स्त्री मान सबको। एक बात बोलू ? बात कड़वी है, लग सकती है.. लेकिन भारत को नुकसान बार बार एक ही विचारधारा ने पहुँचाया है। समझ गयी ना किसने ?
ऐसा माना जाता है कि कई पुण्यात्माओं ने भारत में जन्म लिया स्वयं ईश्वर ने भी कई बार। फिर ईश्वर इस भूमि के प्रति इतना क्रुरु कैसे हो सकता है !? इतनी कठोर नियति !! क्यों ?
और ये क्रूरता आजतक चली आ रही है !
अच्छा शुरू में मैंने बात की थी संस्कृति की समानताओं में , वो जो पुरानी चली आ रही परंपरा है वो भारत में ही जारी है जिसने इतने पुराने नियमो को आज भी संभाल कर रखा है। पशुपति नाथ आज भी पूजे जाते हैं मातृ देवी की पूजा आज भी होती है, प्रकृति कई रूपों में आज भी पूजनीय है। और इतिहासकार कहते हैं, सिंधु घाटी सभ्यता समाप्त हो गयी थी आर्यों के आक्रमण के कारण। अब कोई आक्रांता उसी की संस्कृति को आगे क्यों बढ़ाएगा जिसपर उसने आक्रमण किया हो ? sounds strange ना !?
इतिहासकारो का मानना है कि ग़ज़नवी, गोरी, खिलजी, बाबर, इन सबने भारत पर आक्रमण केवल लूट या अपना साम्राज्य स्थापित करने के लिए किया था ना कि धर्म के नाम पर। पता नहीं इतिहासकार स्वयं को बहलाना चाहते हैं या आज के भारत के नागरिकों को ! या तो वो स्वयं बेवक़ूफ़ है या भारत के नागरिको को समझतें है। दोनों में से कुछ भी संभव है। लेकिन एक चीज है जो निर्धारित है वो ये कि भारत की सरकारें चू....(नहीं नहीं ये नहीं कह सकती, किसी ने कहा था ये गाली की श्रेणी में आता है तो गाली ऐसे लेख में सोभा नहीं देता ! ).... बेवक़ूफ़ हैं !
क्योंकि वो इन इतिहासकारों की बातो को (universal truth) सार्वभौमिक सत्य मान चुके हैं।
मैं ना अक्सर ऐसा सोचती हूँ कि किसी एक पक्ष के साथ इतनी नाइंसाफी होना ठीक तो नहीं। फिर सोचती हूँ अगर ईश्वर ना चाहे तो ये नाइंसाफी हो ही ना। पर ईश्वर ऐसा क्यों चाहता है ? और अगर ऐसा ईश्वर चाहता है तो जरूर इसके पीछे कोई न कारण होगा ! और अगर ईश्वर ऐसा ही चाहता है तो हमे चुप चाप बैठ कर आनंद लेना चाहिए ! लेकिन हमे तो चिंता और निराशा होती है जिसके चलते विरोध और क्रांति का मन करता है ! और अगर मन ऐसा चाहता है तो जरूर इसमें ईश्वर की कोई मर्जी होगी ! और अगर ईश्वर की मर्जी है कि व्यवस्था में परिवर्तन हो तो फिर हम चुप क्यों बैठे ? हमें तो आवाज़ उठानी चहिए !
हाय !!!!! overthinking तो नहीं लग रही है ना तुमको ? या overthinking ही है !?
पता है....ये सारी चीजे, जीवन के तमाम लफड़े, राह में आ रही बाधाएँ, क्रूरताएँ, शोषण, अन्याय, ये सब अक्सर मुझे विचलित करती हैं। और जी करता है इन सबके विरुद्ध आवाज़ उठाने का, इन सभी अव्यवस्थाओं को बदलने का। लेकिन कई बार इनसे मोह भांग जैसा महसूस होता है, मन में विरक्ति छा जाती है। लगता है, होना तो वही है जो ईश्वर चाहेगा तो इतना हाथ पैर मारने की और परेशान होने की आवश्यकता ही क्या है ?
सब कुछ मोह लगता है, सांसारिक चोंचले, बाधाएँ, बंधन, रिश्ते, जीवन......सब कुछ....!!
तुम्हें पता है, किसी चीज से विरक्ति क्यों होती है ? मुझे भी नहीं पता !!! पर मेरा अनुमान है कि जाल के एक छोर से दूसरे छोर तक देख पाने की क्षमता हमें विरक्ति की और ले जाती है। मुझमें अभी ये क्षमता नहीं है पर मुझे ये अवश्य ज्ञात हो चूका है कि जाल का दूसरा छोर भी मौजूद है जो शायद दूसरी दुनिया के द्वार खोलता है !
तुम्हें भी विरक्ति का एहसास होता है क्या कभी ? अच्छा तुम्हारी विरक्ति का भाव कैसा होता होगा ? मुझसे और मेरी ऊल जुलूल बातों से छुटकारा पाने का ? या....मेरी बेचैनियों को समेट कर लुप्त हो जाने का !?
अच्छा चलो इस प्रश्न से विरक्ति में मत डूब जाना तुम , फिर आऊँगी मिलने जल्दी ही......!!!!!