तू इस मन का दास ना बन, इस मन को अपना दास बनाले।
हमारे बड़े-बुजूर्गों ने हमें अक्सर यह बात समझाई है कि कुछ काम ऐसे होते हैं जो केवल हमारे मन के काबू में न होने के कारण बिगड़ जाते हैं। अक्सर लोग कहते हैं कि जिस काम में मन लगे हमें वही काम करना चाहिए लेकिन कर्तव्य कहता है जो काम जरूरी हो उसी में मन लगा लो। अब मन को किस दिशा में लगाना है यह हमारी जिम्मेदारी है लेकिन मन किस दिशा में लगता है यह तो केवल मन के वश में है, और ना चाहते हुए भी हम कई बार मन के वश में हो जाते हैं।
मुझे आज भी सबसे कठिन कार्य मन को काबू में करना ही लगता है। मन उस हठी बालक के समान होता है जो किसी एक चीज की रट लगा ले तो फिर उसे किसी भी कीमत पर पाकर रहता है। आप उसे कितना भी समझाएँ वह नहीं मानता आप उसे मारने का डर दिखाएँ तो भी नहीं मानता। आखिर में उस हठी बालक को मारना ही पड़ता है। लेकिन हठी ठहरा हठी, मार खाने के बाद भी रोना-धोना चालू रहता है। अंत में आपको परिस्थितियाँ और जगह देखकर, कि कहीं लोगों को ऐसा ना लगे कि बच्चे के साथ ज़्यादती हो रही है, आपको उसकी बात माननी ही पड़ती है।
मन और हठी बालक दोनों को काबू में करना मुश्किल है,इसीलिए जरूरी है प्रारंभ से ही उनको अनुशासित रखना ताकि ज़बरदस्ती करने की नौबत ही ना आए।
हम कोई भी कार्य करना शुरू करते हैं तो शुरुआत में दूसरे भाव होते हैं और अंत तक दूसरे हो जाते हैं। पता नहीं आप लोगों ने कभी अनुभव किया है या नहीं पर मुझे तो लगभग ही अनुभव हो जाता है। अब जैसे इसी लेख की बात ले लें तो न जाने पूरा होने तक कितने भावों की लहरें मनपटल पर होकर गुज़र जाएँ। और भावों के परिवर्तन लेख को बहुत प्रभावित भी करते हैं। वैसे यह लेख भी किसी के बहुत प्रेरित करने पर मन को एकाग्रचित करके लिखना शुरू किया है।
भावों के परिवर्तन की समीक्षा के लिए उदाहरण के तौर पर एक विषय चुन लेते हैं — प्रेम। नहीं, प्रेम मेरा पसंदीदा विषय नहीं है पर मेरे भाव यहाँ पल भर में, एकदम चुटकियों में बदल जाते हैं इसीलिए समझना आसान होगा।
पहली बात तो यह कि किसी का पसंद आना हम प्रेम की श्रेणी में नहीं रख सकते फिर भी लगभग ही रख देते हैं। अब यहाँ भावों के परिवर्तन कुछ ऐसे होते हैं, जैसे कि, कभी तो लगता है सारा दिन केवल उसी को सुनती रहूँ, उसी के खयालों में खोई रहूँ, सारा ज़रूरी काम छोड़कर। क्योंकि कल्पनाओं में उससे मिलना मेरे लिए सबसे सुखद अनुभूति होती है। और कभी-कभी लगता है सारे ज़रूरी काम छोड़कर उसके ख्यालों में खोए रहना जो आपको जानता तक नहीं और ना ही उसके प्रति आपकी भावनाओं को, कितनी बड़ी बेवकूफी है !
और उससे भी अधिक मूर्खतापूर्ण तो यह है कि यह जानते हुए भी कि ये मात्र hormones का खेल है हम फिर भी इसमें फँस जाते हैं और मुंगेरीलाल के सपनों की तरह हम भी सपने बुनने लगते हैं।
अब यहाँ एक ही इंसान के प्रति अलग-अलग विचार, भावों के परिवर्तन के कारण ही होते हैं। कभी तो वह इंसान हमारी पूरी दुनिया का एकमात्र महत्वपूर्ण विषय बन जाता है और कभी तो उसका हमारी दुनिया में ना रहना भी हमें बहुत अधिक प्रभावित नहीं करता।
तो कुल मिलाकर मन के बहकावे को संभालना या भावों के परिवर्तित होती लहरों में अडिग खड़ा रहना बहुत मुश्किल कार्य है।
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ReplyDeleteजिसने अपने मन को नियंत्रित कर लिया है, उसका मन उसका सबसे अच्छा मित्र है। लेकिन जिसने ऐसा नहीं किया है, उसका मन उसका सबसे बड़ा
ReplyDeleteशत्रु होगा। -श्रीकृष्ण
और दुख की बात यह है कि आज बहुत से लोग अपने मन को काबू नहीं कर पाते।