प्रिये संग्रहिका ,
आँखों को दाँव पर लगा कर एक बार फिर आयी हूँ तुमसे बात करने। नींद भी जबरदस्त भरी हुई है। बात पूरी हो जाये तो सौभाग्य समझना आज। राम का नाम लेकर शुरू करती हूँ।
लाइब्रेरी से आने के बाद पानी पीकर बैठी ही थी कि मोहल्ले की बच्चियाँ बुलाने आ गयीं बैडमिंटन खेलने के लिए। अँधेरा हो चुका था तो मेरे साथ-साथ बच्चियों को भी थोड़ी मिन्नतें करनी पड़ी मम्मी से की जाने दें। ज्यादा नहीं बस थोड़ी मिन्नतों के बाद ही मम्मी मान गयीं। शाम के वक्त ठण्ड ज्यादा होने लगी है अब। हो भी क्यों ना, नवंबर बस ख़त्म ही होने वाला है। तो मैंने फटाक से जैकेट उठाया और इससे पहले की मम्मी का मन बदलता, बच्चियों के साथ फरार हो गयी।
आज काफी दिनों बाद बैडमिंटन खेला और खेला तो इतना खेला कि अब हाथ दर्द हो रहा है। वहाँ से वापस आने के बाद वही इतिहास का १ लेक्चर खोल कर बैठी थी। साथ में नोट्स बनाने के लिए नोटबुक और कलम लिए भी। थोड़ी देर बाद महसूस हुआ कि हाथ ही काम नहीं कर रहा है। अभी टाइपिंग करते वक्त भी आज तो महसूस हो जा रहा है कि कीबोर्ड पर उँगलियाँ चलाते वक्त कितनी मांसपेशियों का उपयोग होता है। अभी ये हाल है तो कल सुबह तक तो राम ही मालिक हैं !!
आज लेक्चर पूरा नहीं कर पायी, मन एकाग्र नहीं हो रहा था। ३ घंटे के लेक्चर में ४ बार ब्रेक लिया फिर भी पूरा नहीं हो पाया। तो अंत में बंद ही कर दिया। क्या ही मतलब है लेक्चर पूरा होने का जब भेजे में कुछ जाये ही ना !!
लेक्चर बंद करके उठी तो सोचा थोड़ा इंस्टाग्राम की दुनिया की सैर कर ली जाये। वहाँ गयी तो बाबा जी का मैसेज पड़ा था, " कोई विषय है !? " अब कैसे बताऊँ कि अभी तक इन विषयों ने ही ध्यान भटका रखा था लेकिन जैसे ही उनकी जरुरत पड़ती है वो गायब हो जाते हैं। दूर-दूर तक कोई नामो-निशान नहीं , महक भी नहीं मिलती उनकी। ऐसा लगता है अप्सराओं की तरह केवल मेरा ध्यान भटकाने आते हैं ये विषय। और उसमे सफल भी हो जाते हैं कई बार तो जैसे आज हो गए !
वैसे कभी किसी भोले इंसान को देखा है तुमने ? ये भी कैसा सवाल है ! मेरे अलावा तुमने देखा ही कहाँ है किसी को ? और मैं भोली तो नहीं हूँ , अब तो बिलकुल नहीं ! हो सकता है किसी ज़माने में रही होऊँगी पर अब नहीं हूँ। जीवन के कड़वे दाँव-पेंच का स्वाद चख लिया है मैंने !
बच्चों का भोलापन आनंदित करता है। लेकिन वहीं कोई बड़ा इंसान हो तो उसका भोलापन देख कर गुस्सा आता है , दया भी और आश्चर्य भी होता है। गुस्सा इस बात कि लोग उस इंसान के भोलेपन का नाजायज़ फ़ायदा उठाते हैं। और दया इस बात की की उसको पता ही नहीं होता की लोग उसका फ़ायदा उठा रहे हैं। अचरज होता है क्योंकि एक उम्र के बाद जीवन ने लगभग सभी को ऐसे अनुभव करा दिए होते हैं कि भोलेपन को त्याग कर लोग शातिरता का दामन थाम चुके होते हैं।
आश्चर्य होता है ऐसे लोगों को देख कर जो जीवन के ऐसे स्टेज पर आने के बाद भी भोलेपन का साथ नहीं छोड़ते हैं। फिर ऐसे लोगों को देख कर मन विचारों के घोड़े दौड़ाता है। फिर अलग अलग hypothesis उपजती है दिमाग में। जैसे कि....क्या उनका कभी विषम परिस्थितियों, धोखे और किसी के ईर्ष्या का शिकार बनने से सामना नहीं हुआ !? या होने के बाद भी उन्होंने वैसा का वैसा भोला बने रहना चुना !? अगर सामना नहीं हुआ तो वाकई भाग्य के धनी लोग हैं वो। लेकिन ऐसा होना तो लगभग असंभव ही जान पड़ता है। और होने के बाद भी अगर उन्होंने ऐसा होना चुना तो वाकई बड़े बहादुर लोग हैं वो। दुनिया की घिनौनी और चलबाज़ क्रियाओं की प्रतिक्रिया में स्वयं के उच्चतम स्तर को बनाये रखना वास्तव में एक कठिन कार्य है।
दुनिया में जो थोड़ी बहुत अच्छाई बची हुई है वो इन्हीं की बदौलत है और दुनिया शायद इन्हीं लोगों की अच्छाई पर टिकी हुई है।
वैसे तुम्हें क्या लगता है मैंने भोलेपन का साथ छोड़कर अच्छा किया या बुरा ? मुझे ऐसा करना चाहिए था या नहीं !? ऐसा करने की जरुरत थी भी या नहीं !?
चलो अब विदा दो। फिर आऊँगी। ख्याल रखना।